मिल्खा सिंह जीवन परिचय | Milkha Singh biography and quotes in hindi

मिल्खा सिंह जीवन परिचय | Milkha Singh biography and quotes in hindi

फ्लाइंग सिख नाम से मशहूर एथलीट  मिल्खा सिंह ऐसे खिलाडी थे जिन्होंने देश के लिए कई स्वर्ण पदक जीते , भारतीया  आर्मी में रहकर एक सफलतम धावक के रूप में विश्व में एक पहचान बनायीं।  विभाजन के दौरान अनाथ हो गए थे , लेकिन कभी न हारने का जज्बा ने उन्हें देश का एक सफलतम धावक धावक बना दिया।

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मिल्खा सिंह जीवन परिचय | Milkha Singh biography and quotes in hindi

  • नाम –  मिल्खा सिंह 
  • जन्म –  20 नवंबर  1929
  • जन्मस्थान –   गोविंदपुरा पंजाब  (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा हैं)
  • मृत्यु -१८ जून २०२१ (आयु ९१) चंडीगढ़, भारत
  • पत्नी का नाम – निर्मल कौर ( मृत्यु २०२१ )
  • राष्टीयता – भारतीय 
  • पुत्र का नाम – जीव मिल्खा ( गोल्फ खिलाडी )
  • संतान – ४ 
  • खेल – धावक( ट्रैक एंड फील्ड इवेंट )
  • सम्मान – एशियाई खेलो में – ४ पदक ,  राष्ट्रमंडल खेलों – १ पदक 
  • पुस्तक – आत्मकथा द रेस ऑफ़ माई लाइफ़

Milkha singh love story

मिल्खा सिंह को 1956 के खेल में ऑस्ट्रेलिया की महिला खिलाड़ी बेट्टी कथवर्ट से प्रेम हो गया था, फिर वो इस महिला खिलाड़ी से 1960 में दोबारा मिले, रिपोर्ट्स के अनुसार जब 2006 में खेलो का आयोजन  ऑस्ट्रेलिया में हुआ तो फोन उस महिला खिलाड़ी को लगाया तो उसके लड़के ने उठाया, बताया कि उसकी माँ की मौत कैंसर से हो चुकी है, मिल्खा सिंह जब गांव में रहते थे तब भी उनको वहाँ पर भी एक लड़की से प्रेम था, इसके बाबजूद उनका विवाह वालीवाल  महिला खिलाडी निर्मल कौर से हुआ था।

Milkha singh quotes in hindi

1 .अनुशासन, कड़ी मेहनत, इच्छा शक्ति… मेरे अनुभव ने मुझे इतना कठिन बना दिया कि मैं मौत से भी नहीं डरता।” लेकिन एक कहानी उनकी इच्छा को सबसे स्पष्ट रूप से दर्शाती है।

2. आप जीवन में कुछ भी हासिल कर सकते हैं। यह सिर्फ इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसे हासिल करने के लिए कितने बेताब हैं।

3. मैं यह सोचकर आंसू बहा रहा था कि एक रात पहले मैं कुछ न होने से कुछ बन गया था।

4. जब मैं अपने जीवन पर चिंतन करता हूं, तो मैं स्पष्ट रूप से देख सकता हूं कि दौड़ने का मेरा जुनून मेरे जीवन पर कैसे हावी हो गया है। मेरे दिमाग में जो चित्र कौंधते हैं, वे दौड़ते हैं… दौड़ते हैं… दौड़ते हैं…

5. हमारे अमेरिकी कोच, डॉ. [आर्थर डब्ल्यू] हॉवर्ड, भारतीय टीम के साथ [कार्डिफ के लिए] थे ….डॉ हॉवर्ड की प्रेरणा और सलाह के कारण, मैंने गर्मी के बाद गर्मी जीती और आसानी से फाइनल में पहुंच गया।

6. इनमें से प्रत्येक क्षण कड़वी मीठी यादों को वापस लाता है क्योंकि वे मेरे जीवन के विभिन्न चरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं, एक ऐसा जीवन जिसे मेरे चुने हुए व्यवसाय में जीत के लिए मेरे गहन दृढ़ संकल्प से बचाए रखा गया है।

7. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मुझे पहले 300 मीटर तक अपनी गति बनाए रखनी चाहिए, और फिर अंतिम 100 मीटर में अपना पूरा योगदान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर मैं पहले 300 मीटर पूरी गति से दौड़ता, तो स्पेंस भी ऐसा ही करते, हालांकि यह उनकी दौड़ने की रणनीति नहीं थी।

8. मैं तब तक नहीं रुकता जब तक मैं अपने पसीने से बाल्टी नहीं भर लेता। मैं अपने आप को इतना धक्का दूंगा कि अंत में मैं गिर जाऊं और मुझे अस्पताल में भर्ती होना पड़े, मैं भगवान से प्रार्थना करूंगा कि मुझे बचाए, वादा करता हूं कि मैं भविष्य में और अधिक सावधान रहूंगा। और फिर मैं यह सब फिर से करूँगा।

9. मेरे लिए ट्रैक, एक खुली किताब की तरह था, जिसमें मैं जीवन के अर्थ और उद्देश्य को पढ़ सकता था। मैंने इसका सम्मान ऐसे किया जैसे मैं एक मंदिर के गर्भगृह में होता, जहाँ देवता निवास करते थे और जिसके सामने मैं एक भक्त के रूप में विनम्रतापूर्वक स्वयं को प्रणाम करता था। अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ रहने के लिए, मैंने सभी सुखों और विकर्षणों को त्याग दिया, अपने आप को फिट और स्वस्थ रखने के लिए, और अपना जीवन उस जमीन को समर्पित कर दिया जहां मैं अभ्यास और दौड़ सकता था। इस तरह दौड़ना मेरा भगवान, मेरा धर्म और मेरा प्रिय बन गया था

FAQ 

उत्तर – 1 .  फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह दूसरा नाम है जो पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने दिया था।

उत्तर – २.  भाग मिल्खा भाग मूवी२०१३ में आयी थी , जिसका निर्देशन राकेश ओमप्रकाशमेहरा ने किया था।

उत्तर -३. मिल्खा सिंह की लम्बाई 178 सेंटीमीटर है और उनका वजन 70 kg है

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अभिभावक और शिक्षण संस्थान की भूमिका।

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आकांक्षा सिंह “अनुभा

क्या कभी किसी ने सोचा था कि वक्त का पहिया इतना लंबा रुकेगा? शायद ही किसी ने ऐसा सोचा होगा। वक्त का पहिया ऐसा रुका कि व्यक्ति की आर्थिक, सामाजिक जैसी गतिविधियों पर ताला लग गया।

‘मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।’ अरस्तू का ये कथन गलत साबित होने की कगार पर आ गया। समाज शास्त्र की जैसे परिभाषा ही बदल गयी। ये सब कुछ आखिर सम्भव हो गया, विश्वव्यापी महामारी

कोविड19 के फैलने से।

कोविड 19 महामारी एक ऐसी महामारी है जिसने व्यक्ति का जीवन अस्त व्यस्त कर दिया। लेकिन वो कहते हैं ना कि किसी चीज़ का अंत ही आरम्भ बन जाता है। ठीक इसी प्रकार कोविड 19 महामारी के आने से हर गतिविधि एक नए रूप में सामने आई। जीवन जीने का नज़रिया ही बदल गया। इसी कड़ी में शिक्षा जैसी जरूरी आवश्यकता का भी स्वरूप बदल गया। नई पीढ़ी को परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदार बनाने हेतु शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है।

लेकिन शिक्षा का स्वरूप इस भयंकर कोविड19 की महामारी काल में पूरा का पूरा बदल गया। महामारी ने विद्यार्थियों की पूरी दिनचर्या ही बदल कर रख दी। बेशक बच्चों के माता पिता पहले गुरु होते हैं। लेकिन विद्यालय में गुरु मंदिर के ऐसे पुष्प होते हैं जो भिन्न भिन्न प्रकार की अपनी महक के ज्ञान से बच्चों के मन मस्तिष्क में नित नई ऊर्जा भरते हैं।
शिक्षक ऐसे ईश्वरीय स्वरूप होते हैं, जो बच्चों में मानसिक, सामाजिक विकास की ऊर्जा भरते हैं। एक बच्चा जब छुटपन से विद्यालय जैसे मंदिर में कदम रखता है तब ईश्वर स्वरूप शिक्षक बच्चों की हर समस्या का समाधान करते हैं। शिक्षक बच्चों को मन , कर्म, वचन से जीवन की सभी प्रकार की चुनौतियों से डटकर सामना करने के लिए सशक्त बनाते हैं। बच्चों का एक लंबा वक्त शिक्षा के मंदिर में ही बीतता है। जिससे छोटे से बड़े कक्षा के हर स्तर के विद्यार्थियों को ईश्वर स्वरूप शिक्षक ही सँवारता है।
लेकिन वर्तमान समय में कोविड 19 की महामारी के समय में अभिभावक और शैक्षणिक संस्थानों में कुछ ऐसे मतभेद उभर कर समाज में सामने आए जो शिक्षक की गरिमा पर प्रश्न चिन्ह लगा चुके हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि शिक्षा के मंदिर की शोभा विद्यार्थियों से है परन्तु बिना शिक्षक के शिक्षा का मंदिर अपंग कहलायेगा। विद्यार्थी और शिक्षक दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। विद्यार्थी बिना विद्यालय व्यर्थ और शिक्षक बिना शिक्षा व्यर्थ।
कोविड 19 महामारी के दौर में जब व्यक्ति का व्यक्ति से सम्पर्क बंद है तो प्रश्न ये उठा आखिर शिक्षा के स्वरूप का संचालन कैसे हो? बड़े स्तर पर समाधान निकला। डिजिटलाइजेशन के युग मे शिक्षा के संचालन का स्वरूप ही बदला गया, अपनाया भी गया।
एक लंबे वक्त बाद शिक्षा के संचालन स्वरूप का ढाँचा पूरी तरह बदल गया। हर वर्ग की पहुँच तक शिक्षा को संभव बनाया गया। जिसका पूरा श्रेय शिक्षक को ही जाता है। इसमें कोई संशय ही नहीं है। खुद से प्रश्न करें कि क्या शिक्षक के बिना ये सम्भव हो पाता ?

डिजिटलाइजेशन

डिजिटलाइजेशन के इस युग में हर वर्ग के शिक्षक ने बखूबी सीखते हुए खुद को हर सम्भव ढालते हुए शिक्षा के प्रसार में कोई कमी नहीं छोड़ी। लेकिन वो कहते हैं ना कि सकारात्मकता के साथ नकारात्मकता भी साथ साथ चलती है। कोविड 19 महामारी के दौर में शिक्षा का स्वरूप तो बदल गया लेकिन समस्याएं भी सामने आईं। वो ये कि बच्चों की क्लास ऑनलाइन चल रही है, बच्चा विद्यालय नहीं जा रहा तो फ़ीस क्यों दें ?
प्रश्न वाज़िब भी है। लेकिन अभिभावक एक प्रश्न खुद से करें कि जब बच्चा जिस कक्षा में पंजीकृत होता है तो क्या उसके बगैर उनका कार्य चल पाएगा ? अभिभावक अपनी स्वेच्छा से अपने बच्चे का विद्यालय में पंजीकरण कराते हैं। शिक्षण संस्थान योजनानुसार शिक्षा को डिजिटली शिक्षकों द्वारा प्रसार करवाते हैं। बच्चों की शिक्षा और साल खराब न हो इसलिए हर संभव प्रयास शैक्षणिक संस्थान अपने स्तर से करवाते हैं। फिर चाहे बच्चा किसी भी वर्ग का हो। ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली हर वर्ग के लिए संभव कराई जाती है। फिर फीस ना देने का प्रश्न आखिर क्यों ? हाँ प्रश्न ये उठना वाज़िब है कि मनमुताबिक फीस वसूली आखिर क्यों ? यदि मन मुताबिक फीस प्राईवेट शिक्षण संस्थान ले रहें हैं तो हर वर्ग के अभिभावक को ये अधिकार है कि उसके खिलाफ आवाज़ उठाये।
अभिभावक के पास कई विकल्प मौजूद है कि वो अपने बच्चों को ऐसे मनमानी फीस वसूलने वाले शिक्षण संस्थान से अपने बच्चे को पृथक कर दें। लेकिन यदि अभिभावक बच्चों को विद्यालय स्तर पर शिक्षा का लाभ प्राप्त करा रहें हैं तो फीस देना आपका कर्त्तव्य बन जाता है।
 
कहते हैं वक़्त के साथ बदलना चाहिए। कोविड 19 महामारी में शिक्षा का स्वरूप पूरी तरह बदल गया है और ये बदलाव विद्यार्थियों के भावी भविष्य के लिए उत्तम है।
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आकांक्षा सिंह “अनुभा”
रायबरेली, उत्तरप्रदेश।