भ्रष्टतन्त्र का जुआ-आरती जायसवाल

आरती जायसवाल साहित्यकार की कलम से “भ्रष्टतन्त्र का जुआ” हिंदी कविता प्रदर्शित करती है कि  2005 में भारत में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल नामक एक संस्था द्वारा किये गये एक अध्ययन में पाया गया कि 62% से अधिक भारतवासियों को सरकारी कार्यालयों में अपना काम करवाने के लिये रिश्वत या ऊँचे दर्ज़े के प्रभाव का प्रयोग करना पड़ा। वर्ष 2008 में पेश की गयी इसी संस्था की रिपोर्ट ने बताया है कि भारत में लगभग 20 करोड़ की रिश्वत अलग-अलग लोकसेवकों को (जिसमें न्यायिक सेवा के लोग भी शामिल हैं) दी जाती है। उन्हीं का यह निष्कर्ष है कि भारत में पुलिस कर एकत्र करने वाले विभागों में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है। आज यह कटु सत्य है कि किसी भी शहर के नगर निगम में रिश्वत दिये बगैर कोई मकान बनाने की अनुमति नहीं मिलती। इसी प्रकार सामान्य व्यक्ति भी यह मानकर चलता है कि किसी भी सरकारी महकमे में पैसा दिये बगैर गाड़ी नहीं चलती।
राजनीतिक पार्टियों का मूल उद्देश्य सत्ता पर काबिज रहना है। इन्होंने युक्ति निकाली है कि गरीब को राहत देने के नाम पर अपने समर्थकों की टोली खड़ी कर लो। कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए भारी भरकम नौकरशाही स्थापित की जा रही है। सरकारी विद्यालयों एवं अस्पतालों का बेहाल सर्वविदित है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में ४० प्रतिशत माल का रिसाव हो रहा है। मनरेगा के मार्फत्‌ निकम्मों की टोली खड़ी की जा रही है। १०० रुपये पाने के लिये उन्हें दूसरे उत्पादक रोजगार छोड़ने पड़ रहे हैं। अत: भ्रटाचार और असमानता की समस्याओं को रोकने में हम असफल हैं। यही हमारी महाशक्ति बनने में रोड़ा है।

‘भ्रष्टतन्त्र का जुआ’

भ्रष्टतन्त्र का जुआ’ धरा है

लोकतंत्र के कन्धों पर,

सत्य-झूठ के चयन का जिम्मा

यहाँ अक़्ल के अन्धों पर।

गूंगों को गीतों का ठेका,

लँगड़े नृत्य में सिद्ध हुए

लाचारी बैठी है कैसी

कर्तव्यों के कन्धों पर?

लूटो जितना लूट सको

बस नए बहाने गढ़ लेना

स्वर्णखान की रक्षा का

ज़िम्मा है कालेधन्धों पर।

सत्ता में शामिल होते ही सबने ही है जन को ठगा

कब तक हम विश्वास करें उनकी झूठी सौगन्धों पर?

‘आग लगाकर,आग बुझाना

कुछ जन का है काम यही।’

प्रेम के धोखे में हस्ताक्षर

होते ‘छल’ अनुबन्धों पर।

जीवन की पगडण्डी पर

सुख-दुःख दोनों के पहरे हैं,

नेह के धागे टूट गए सब,

रिश्ते कब तक ठहरे हैं।

वक़्त की धार की मार पड़ी

जब जीवन के प्रबन्धों पर।

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आरती जायसवाल