रानी रूदाबाई का इतिहास | Rani Rudabai ( Rupba ) History in Hindi

रानी रूदाबाई का इतिहास | Rani Rudabai ( Rupba ) History in Hindi

१५वीं शताब्दी ईसवीं सन् १४६०-१४९८ पाटन राज्य गुजरात से कर्णावती (वर्तमान अहमदाबाद) के राजा थे राणा वीर सिंह वाघेला, यह वाघेला राजपूत राजा की एक बहुत सुन्दर रानी थी जिनका नाम था रुदाबाई (उर्फ़ रूपबा)। इनकी सुंदरता के चर्चे चारों ओर फैले हुए थे। जितनी ही रूप वान थी उतनी ही दृढ़ संकल्प और साहसी महिला।

रानी रुदाबाई परिवार (Rani Rudabai Family) –

क्रमांकजीवन परिचय बिंदुरुदाबाई जीवन परिचय
1.       पूरा नामरुदाबाई (उर्फ़ रूपबा)
2.       राज्य गुजरात से कर्णावती (वर्तमान अहमदाबाद)
3.       विशेष रानी रुदाबाई की पच्चीस सौ धनुर्धारी वीरांगनाओं ने सुल्तान बेघारा के दस हजार सैनिकों को मार डाला था
4.       प्रसिद्धि का कारण सुल्तान बेघारा को मार कर रानी रुदाबाई ने सीना फाड़ कर दिल निकाल कर कर्णावती शहर के बीच में टांग दिया था
5.       पति का नामराजा वीर सिंह वाघेला
6.       मृत्युजल समाधि

कट्टरपंथी का सीना फाड़ शहर के बीच टांगने वाली रूदाबाई

पाटन राज्य बहुत ही वैभवशाली राज्य था इस राज्य ने कई तुर्क हमले झेले थे, पर कामयाबी किसी को नहीं मिली , सन् १४९७ पाटन राज्य पे हमला किया राणा वीर सिंह वाघेला के पराक्रम के सामने सुल्तान बेघारा की चार लाख से अधिक संख्या की फ़ौज २ घंटे से ज्यादा टिक नहीं पाई थी।

राणा वीर सिंह वाघेला की फ़ौज छब्बीस सौ से अठ्ठाइस सौ की तादात में थी क्योंकि कर्णावती और पाटन बहुत ही छोटे छोटे दो राज्य थे। इनमें ज्यादा फ़ौज की आवश्यकता उतनी नहीं होती थी । राणा जी के रणनीति ने चार लाख की जिहादी लूटेरों की फ़ौज को खदेड दिया था।

इतिहास गवाह है कि कुछ हमारे ही भेदी इस तरह के हुए हैं जो दुश्मनों से जाकर अक्सर मिल जाया करते थे कुछ लालच और लोभ में , इसी तरह द्वितीय युद्ध में राणा जी के साथ रहने वाले निकटवर्ती मित्र धन्नू साहूकार ने राणा वीर सिंह को धोखा दिया । धन्नू साहूकार जा मिला सुल्तान बेघारा से और सारी गुप्त जानकारी उसे प्रदान कर दी, जिस जानकारी से राणा वीर सिंह को परास्त कर रानी रुदाबाई एवं पाटन की गद्दी को हड़पा जा सकता था । सुल्तान बेघारा ने धन्नू साहूकार के साथ मिल कर राणा वीरसिंह वाघेला को मार कर उनकी स्त्री एवं धन लूटने की योजना बनाई ।

सुल्तान बेघारा ने साहूकार को बताया अगर युद्ध में जीत गए तो जो मांगोगे दूंगा, तब साहूकार की दृष्टि राणा वाघेला की सम्पत्ति पर थी और सुल्तान बेघारा की नज़र रानी रुदाबाई को अपने हरम में रखने की एवं पाटन राज्य की राजगद्दी पर आसीन होकर राज करने की थी ।

सन् १४९८ ईसवीं (संवत् १५५५) दो बार युद्ध में परास्त होने के बाद सुल्तान बेघारा ने तीसरी बार फिर से साहूकार से मिली जानकारी के बल पर दुगनी सैन्यबल के साथ आक्रमण किया, राणा वीर सिंह की सेना ने अपने से दुगनी सैन्यबल देख कर भी रणभूमि नहीं त्यागी और असीम पराक्रम और शौर्य के साथ लड़ाई लड़ी, जब राणा जी सुल्तान बेघारा के सेना को खदेड़ कर सुल्तान बेघारा की और बढ़ रहे थे तब उनके भरोसेमंद साथी धन्नू साहूकार ने पीछे से वार कर दिया, जिससे राणा जी की रणभूमि में मृत्यु हो गयी ।

साहूकार ने जब सुल्तान बेघारा को उसके वचन अनुसार राणा जी की धन को लूट कर उनको देने का वचन याद दिलाया तब सुल्तान बेघारा ने कहा …”एक गद्दार पर कोई ऐतबार नहीं करता हैं ,गद्दार कभी भी किसी से भी गद्दारी कर सकता हैं .।” सुल्तान बेघारा ने साहूकार को हाथी के पैरों के तले फेंक कर कुचल डालने का आदेश दिया और साहूकार की पत्नी एवं साहूकार की कन्या को अपने सिपाहियों के हरम में भेज दिया।

रानी रुदाबाई ने महल के ऊपर छावणी बनाई

सुल्तान बेघारा रानी रुदाबाई को अपनी वासना का शिकार बनाने हेतु राणा जी के महल की ओर दस हजार से अधिक लश्कर लेकर पँहुचा, रानी रुदाबाई के पास शाह ने अपने दूत के जरिये निकाह प्रस्ताव रखा, रानी रुदाबाई ने महल के ऊपर छावणी बनाई थी जिसमे पच्चीस सौ धनुर्धारी वीरंगनायें थी, जो रानी रुदाबाई के इशारा पाते ही लश्कर पर हमला करने को तैयार थी। रानी रुदाबाई न केवल सौंदर्य की धनी ही नहीं थी बल्कि शौर्य और बुद्धि की भी धनी थी , उन्होंने सुल्तान बेघारा को महल द्वार के अन्दर आने को कहा, सुल्तान बेघारा रानी को पाने के लालच में अंधा होकर वैसा ही किया जैसा रुदाबाई ने कहा, और रुदाबाई ने समय न गंवाते हुए सुल्तान बेघारा के सीने में खंजर उतार दिया और उधर छावनी से तीरों की वर्षा होने लगी जिससे शाह का लश्कर बचकर वापस नहीं जा पाया।

सुल्तान बेघारा को मार कर रानी रुदाबाई ने सीना फाड़ कर दिल निकाल कर कर्णावती शहर के बीच में टांग दिया था , और उसके सर को धड़ से अलग करके पाटन राज्य के बीच टंगवा दिया, साथ ही यह चेतावनी भी दी गई कि कोई भी आततायी भारतवर्ष पर, या हिन्दू नारी पर बुरी नज़र डालेगा तो उसका यही हाल होगा ।
रानी रुदाबाई की पच्चीस सौ धनुर्धारी वीरांगनाओं ने सुल्तान बेघारा के दस हजार सैनिकों को मार डाला था।
रानी रुदाबाई इस युद्ध के बाद जल समाधी ले ली ताकि उन्हें कोई और आक्रमणकारी अपवित्र न कर पाएं ।

भारतवर्ष में ही ऐसी वीरांगनाओं की कथाएँ मिलेंगी जिन्होंने अपने राज्य और देश की सेवा में अपना सर्वस्व निछावर किया और इतिहास लिखकर कुछ कर गई। अब हम पर है कि हम उनको, उनकी शहादत को किस तरह सम्मान देते हैं।

अंजना छलोत्रे

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