उपकेश राज की रीट (सत्य कहानी) | “शिक्षक भर्ती परीक्षा”

उपकेश राज की रीट (सत्य कहानी) | “शिक्षक भर्ती परीक्षा”

राजस्थान में “शिक्षक भर्ती परीक्षा” को लेकर हुए घोटाले से संबंधित कहानी।

मरुकांतर एक विशाल राष्ट्र जिसमें २९ प्रदेश, सबसे बड़ा साम्राज्य उपकेश ! वहां का राजा अगेंद्रा जैसे हेमपुष्पक अपितु अशोक नहीं था, अपने प्रांत में सैकड़ों समुदाय रहते थे अपितु अगेंद्रा ने सदैव परिवार, मित्रों की बातों पर ही ध्यान देता अगेंद्रा का आमलोगों से उसका नाता धीरे-धीरे टूटना आरंभ हो गया, अगेंद्रा को एक चिंता खाए जा रही थी मेरे जाने के बाद इस साम्राज्य का क्या होगा ? समय अनुसार मरुकांतर के नियम और कानून परिवर्तन होना प्रारंभ हो चुका था, आम लोगों को अधिकार मिल गया वह अपना राजा स्वयं चुन सकते हैं। अगेंद्रा ने अपने विपक्षी सदस्यों से दूरी और साम्राज्य पर अपना वर्चस्व रखने के लिए पुनः लोगों के बीच में आना प्रारंभ का दिया किंतु पुरानी चूक उसे सिंहासन से दूर कर रही थी । पुरानी भूल उसे मन को व्याकुल कर रही थी जैसे थाली से चम्मच कहे, ज्यादा मेरा मान, सभी कटोरी चूमता,अधर जीभ रसपान इस प्रकार मन चंचल होने लगा । उपकेश में युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही थी पूर्णत शिक्षित होने के उपरांत भी उनके पास रोजगार नहीं! अगेंद्रा ने मंत्रिमंडल की बैठक आयोजित कर “अंकुश” को निर्देश दिए शिक्षा शास्त्र में विद्वान/विदुषी के रिक्त पद योग्यता के अनुसार भर दिए जाए । मंत्री अंकुश ने पदाधिकारियों शीघ्र बुलाकर प्रक्रिया प्रारंभ कर दी किंतु “अगेंद्रा” नहीं चाहता कि साम्राज्य में शिक्षा प्रणाली विकसित हो, अंकुश ने रीट नाम प्रक्रिया प्रारंभ कर दी। जिनका कार्य बालक/बालिका को किशोर अवस्था तक ज्ञान विद्या देना । नेतृत्व हेतु “अंकुश” ने “मुरली कार्तिक” को बुलाया और चर्चाएं।
अंकुश – महाराज का आदेश हैं जब तक सिंहासन पर हूं ।सभी को बातों में उलझा कर रखना हैं ।
मुरली कार्तिक – कैसी बातें ? और क्यों ?
अंकुश – अरे ! तुम समझो अभी तक सिंहासन पे कोई दृष्टि नहीं है और लोग साम्राज्य से बाहर जाना चाहते हैं, तुम समझ रहे हो, जैसे लाठी नहीं टूटे और सांप मर जाएं ।
मुरली कार्तिक – मंत्री जी समझ गया अपना लाभ “हाहाहाहाहा” (हंसते हुए) चलो अच्छा है ।
उपकेश साम्राज्य हर्ष और उल्लास उमंग छा गई, लोग हर्षोत्फुल्ल हो रहे थे “अंकुश” ने अब पूर्ण कार्य उपकेश राज के सैनिकों को सौप दिया, प्रक्रिया प्रारंभ होने से पूर्व सैनिक, अर्जुन, सोमराज, विजल देव, विक्रम मिलकर स्वार्थ के बंधक हो गए उपकेश’राज के साथ मिलकर योजना बनाई तक तक “अंकुश” ने मंत्री पद त्यागपत्र अगेंद्रा को दे दिया । अब साम्राज्य तथा खजाना दोनों को अपने हाथों में रहे और रणनीति बनाई की लोग बैठे रहेगें हम सभी को मूर्ख बना देंगे । पांच सैनिकों ने परिवार एवम् पूंजी पतियों को आचार्य पद के लिए चयन कर लिया अब राज्य और मंत्रिमंडल से मिलकर योजना को गोपनीय रखा, किंतु महक को राह की आवशकता नहीं होती असत्य और झूठ कितने दिन छिपेंगा ? कभी तो बाहर आना ही पड़ेगा हैं। आचार्यों की सूची जारी हो गई अपितु राज्य के निर्धन व असहाय लोग उसमें एक भी नहीं। साम्राज्य में क्षणिक- क्षणिक चर्चाएं होने लगीं अगेंद्रा को राज्य की पुनः चिंता होनी प्रारम्भ हो गई । अगेंद्रा किसी को बता नहीं सकता मैने ऐसा कार्य किया लोग निशारा के पन्ने बिखरने लगा । तीन बार अत्यंत व्याधि (बीमारी) के कारण ठलुआ “बेरोजगार” को पद से दूर रखा। उपकेश’राज अधिकारियों ने न्याय के लोगों की बातें सुनकर मन में सोच दुख-पीड़ाओं के उत्पादक, हमने ही तो पाले सारे कहते हुए कारवाई आरंभ कर दी। लोग – झूठों के घर पानी भरते, सत्य बोलने वाले सारे । अगेंद्रा- गंगा पर उँगलियाँ उठाते, छोटे-छोटे नाले सारे । लोग-उज्ज्वल धुले दूध के बनते, मन के काले-काले सारे । अगेंद्रा स्वयं इस चक्रव्यूह में फंस गया अन्य सैनिकों और दोषी ठहराया, किंतु लोग उसे क्षमा नहीं करने वाले थे, राजा होकर लोगों के साथ धोखा किया उपकेश साम्राज्य के लोगों ने नया राजा खोजना प्रारंभ कर दिया । अगेंद्रा ने अपना साम्राज्य छोड़ प्रदेश जाना पड़ा। याथार्थ -किसी का शोषण करना या उसे पीड़ा देना, स्वयं का विनाश हैं।

साहित्यचार्य – कहानीकार
भारमल गर्ग “साहित्य पंडित”
पुलिस लाईन जालोर (राजस्थान)
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