वीरवर वीरा पासी का सत्तावनी क्रांति में योगदान | Veeravar Veera Pasi

वीरवर वीरा पासी का सत्तावनी क्रांति में योगदान | Veeravar Veera Pasi

रायबरेली जनपद का बैसवारा प्राचीन काल से कलम, कृपाण और कौपीन का धनी क्षेत्र माना जाता रहा है। वैसे तो बैसवारा क्षेत्र को रायबरेली, उन्नाव और लखनऊ की सीमाएं स्पर्श करती हैं। बैसवारा के अनेक राजाओं, ताल्लुकेदारों ने 1857 ई० की क्रांति जितना बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, उतना ही उन राजाओं की सेनाओं ने भी हिस्सा लिया है। किसी राजा की जीत का आधार सैनिक ही होते हैं।

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रायबरेली की धरती ने वीरवर वीरा पासी जैसा नायक को जन्म दिया। वीरा पासी का वास्तविक नाम स्वर्गीय शिवदीन पासी था। वीरा पासी का जन्म 11 नवंबर सन 1835 को रायबरेली जिला के लोधवारी गाँव में हुआ था। लोधवारी शहजादा की रियासत थी। शहजादा महाराजा रणजीत सिंह के पोते थे। कुछ इतिहासकार वीरा पासी का जन्म भीरा गोविंदपुर मानते थे। भीरा गोविंदपुर वीरा पासी की बहन बतसिया की ससुराल थी। वीरा के पिता का नाम सुखवा और माता का नाम सुरजी था। माता-पिता बहुत ही निर्धन थे। दुर्भाग्यवश वीरा के बचपन में ही माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था। अब वीरा बेसहारा होकर अपनी बहन बतसिया के ससुराल में आकर रहने लगे थे। कालांतर में बहन के ससुराल में रहने वाले भाई को वीरना कहा जाता था। इसलिए बहन के घर में रहने के कारण वीरना से वीरा नाम पड़ गया था।

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वीरा पासी बाल्यकाल से ही बहुत बलिष्ठ और फुर्तीला था। शंकरपुर रियासत के राजा राना बेनी माधव सिंह की फौज में सैनिकों की भर्ती होनी थी। राना साहब की फौज में भर्ती होने के कठोर नियम भी थे। भर्ती होने के लिए आए हुए नौजवान लड़कों को राणा साहब एक सेर (लगभग 950 ग्राम) घी खिला कर अपने कक्ष में बुलाते थे और सीना में जोर से दो घूसा (मुक्का) मारते थे। जो लड़का मूर्छित नहीं होता था, उसे अपना अंगरक्षक नियुक्त कर लेते थे। 18 वर्ष की आयु में वीरा पासी राना साहब के फौज में भर्ती होने गया और सेना भर्ती की अग्नि परीक्षा में सफल रहा है। राना साहब द्वारा मुट्ठी बंद करके दो घूसा खाने के बाद भी वीरा हिला तक नहीं। उसकी वीरता के कारण राना बेनी माधव सिंह ने अपना अंगरक्षक नियुक्त कर लिया।


जनश्रुतियों के आधार पर कहा जाता है, परशुराम के पसीने से पासी जाति की उत्पत्ति हुई थी। पासी जाति लड़ाकू, निडर और स्वामिभक्त के रूप में जानी जाती है। पासी शब्द पा+असि से मिलकर बना है। पा का अर्थ है पकड़ और असि का अर्थ है तलवार। इस प्रकार पासी शब्द का अर्थ हुआ- जिसके हाथ में तलवार हो।

भारत में मुसलमानों का वर्चस्व कायम था। जिसे रोकने के लिए हिंदू राजाओं ने पासी बिरादरी से सूअर का पालन करवाया था। जिससे मुसलमानों को हिंदू बस्ती में घुसने से रोका जा सके। पासी जाति के लोग वीरों की परंपरा में अग्रसर थे। स्वामिभक्त जाति को छोटी जाति मानते हुए षड्यंत्र के तहत जरायम (अपराधी जाति) बना दिया गया।


राना बेनी माधव सिंह ने अपने पिता राजा राम नारायण सिंह के साथ अपने ननिहाल नाइन में अंग्रेजों से लोहा लेने लगे थे। इस अनियोजित युद्ध में राना साहब के पिता वीरगति को प्राप्त हुए और घायल अवस्था में राना बेनी माधव सिंह अंग्रेजों द्वारा बंदी बना लिए गए। उस समय वीरा पासी अंगरक्षक के रूप में नियुक्त हो चुके थे। राना बेनी माधव सिंह की माता जी रो-रो कर मूर्छित हो जाती थी। राज माता के आँसू वीरा से देखे नहीं गए। वीरा पासी ने अंग्रेजों की जेल से राना साहब को छुड़वाने की योजना बनाई। जेल मैनुवल के नियमानुसार घड़ी में जितने बजते थे, उतने बार बंदी रक्षकों/पहरेदारों द्वारा घंटा बजाया जाता था। यह प्रथा आज भी भारत की जेलों और पुलिस लाइनों में विद्यमान है।

वीरा पासी ने विश्वासपात्र लोहार से मजबूत लोहे की सरिया से खूंटी नुमा 12 कील बनवाई। रात्रि में जेल के बैरक के पीछे छिपकर वीरा पासी बैठ गए। जैसे ही मध्यरात्रि के 12:00 बजे का 12 बार घंटा टन टन बजना शुरू हुआ। उसी घंटे की ध्वनि के साथ ही वीरा फुर्ती के साथ एक-एक कील ठोकते हुए मजबूत रस्सा लेकर छत पर पहुँच गए। रोशनदान के सहारे रस्सा डालकर राना बेनी माधव सिंह को जेल से आजाद करा लिया। ब्रिटिश साम्राज्य की बनी इमारतें ऊँची और बड़े रोशनदान वाले होती थी। जिनका प्रमाण आज भी सरकारी इमारतों में विद्यमान है।


राना साहब ने वीरा पासी की निडरता, बहादुरी और स्वामिभक्ति देखकर अपनी रियासत शंकरपुर का सेनापति बना लिया था। स्वामिभक्त वीरा पासी ने 50 से अधिक अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था। इसलिए भारत से लेकर लंदन तक वीरा पासी के नाम से अंग्रेज कांपते थे। अंग्रेजों ने वीरा से भयभीत होकर जिंदा या मुर्दा पकड़ने अथवा उनका पता बताने वाले को सन 1857 में 50,000 (पचास हजार रुपये) का इनाम घोषित किया था। भारतीय इतिहास में अंग्रेजों द्वारा पहली बार इतनी अधिक धनराशि का इनाम घोषित किया गया था, वरना क्रूर अंग्रेज 5.0 रुपये से अधिक का इनाम घोषित नहीं करते थे। इसका प्रमाण आज भी लंदन में देखा का रखा हुआ है। फिर भी वीरवर वीरा को अंग्रेज पकड़ नहीं सके थे।


वीरा पासी ने अपने अदम्य साहस के साथ राना बेनी माधव सिंह का हर कदम साथ दिया। कभी भी अंग्रेजों ने राना साहब की भनक तक नहीं लगने दी। भीरा की लड़ाई में कुछ देसी गद्दारों की सहायता से अंग्रेजों ने राना साहब को घेर लिया था। युद्ध कला में निपुण वीरा पासी ने राना साहब के प्राणों की रक्षा करते हुए स्वयं का बलिदान कर दिया था। इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए वीर योद्धा वीरा का सिर अपने हाथों में रखकर राना बेनी माधव सिंह बहुत रोए थे। राना साहब वीरा को अपना दाहिना हाँथ मानते थे।


वीरा पासी की यादों को चिरस्थाई बनाने के लिए रायबरेली में जिला पंचायत कार्यालय से पहले वीरा पासी द्वार बनाया गया है। बैसवारा का केंद्र बिंदु लालगंज में नगर पंचायत कार्यालय के सामने वीरा पासी के वक्षस्थल तक की प्रतिमा लगाई गई है। अफसोस शासन और प्रशासन की लापरवाही और निष्ठुरता के कारण लालगंज में वीरा पासी की मूर्ति के आसपास का चबूतरा व गेट टूट चुका है, जिसे बनवाने वाला कोई भी समाजसेवी, जनप्रतिनिधि अथवा प्रशासन सामने नजर नहीं आता है। यथाशीघ्र स्थल का जीर्णोद्धार होना चाहिए।


जातिगत राजनीति का खेल था कि दलित होने के कारण वीरवर वीरा पासी को इतिहास के पन्नों में इंसाफ नहीं मिल सका। महान योद्धा, कुशल अंगरक्षक, सेनापति और स्वामिभक्त होने के बावजूद नाम के आगे पासी शब्द लगा होने के कारण इस वीर पुरुष का नाम गुमनाम हो गया, वरना इस योद्धा का नाम भी इतिहास पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा गया होता।

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सरयू-भगवती कुंज
अशोक कुमार गौतम
असिस्टेंट प्रोफेसर
शिवा जी नगर, दूरभाष नगर
रायबरेली (उ०प्र०)
मो0 9415951459