इंतजार | लघुकथा | रत्ना सिंह

इंतजार | लघुकथा | रत्ना सिंह

रत्ना सिंह

बहुत दूर तक वह मेरा पीछा करती रही शायद आवाज भी लगा रही थी मैं सहेलियों के साथ गपशप करने में व्यस्त इसलिए ध्यान नहीं दिया । तभी मेरे फोन की घंटी बजी फोन उठाया। हां मां बस यही सहेलियों के साथ हूं आती हूं, और सहसा पीछे मुड़ी तो देखा दादी अम्मा एक लाठी के सहारे खड़ी हुई कमर झुकी शरीर शिथिल बस जीभ सजीव और सक्रिय थी। उन्होंने कांपते हाथों से मुझे एक पर्ची पकड़ाई।ये क्या दादी अम्मा? मैंने पूछा! बिटिया यहिमा हमरे बेटवा केर फोन नंबर है बहुत दिन होइगे बात नहीं भय । पहिले पड़ोस मा फोन करिके हाल चाल पूछ लेत रहय आजकल नहीं,और दादी अम्मा की निस्तेज आंखों से जल की बूंदे छलक पड़ी।

अच्छा दादी अम्मा आपका बेटा कहां गया है? मैंने पूछा!अरे!का बताई बिटिया चार साल पहिले बुढऊ मरे ।अउर एक लरिका रहय वह छोड़िए के विदेश चलागवा बहुत समझायेन कि बच्चा छोडिके न जाव लेकिन नहीं माना।हुवय जाइके बियाह करि लिहिस । तब से आपका बेटा आया नहीं और आप अकेले रहती है दादी अम्मा मैंने पूछा! हां बिटिया। मैंने अपने मोबाइल से अम्मा के बेटे को फोन लगाया । कई बार घंटी गई लेकिन उधर से किसी ने फोन नहीं उठाया अम्मा भी कोई उठा नहीं रहा है। अच्छा बिटिया अम्मा ने छोटा सा उत्तर दिया और चुप हो गयी। थोड़ी देर बाद अम्मा से रहा नहीं गया(मां जो ठहरी) बिटिया एक बार फिर फोन लगा दियव । अच्छा करती हूं। मैंने दोबारा से फोन लगाया इस बार किसी ने फोन उठाया(शायद उनका बेटा ही होगा) हेलो- हेलो! कौन बोल रहा है? उधर से आवाज आई तब तक मैंने अम्मा को फोन पकड़ा दिया। हलव बच्चा हमार बिटवा हमार लाल ठीक है।येतने दिन से बात काहे नहीं करेव पूत एक बार चले आव न बच्चा तुमका देखें बहुत दिन होई गयी।जब समय मिलेगा तो आ जाऊंगा हमारा भी परिवार है और बहुत काम है बाद में बात करूंगा । हां एक बात और तुम बार -बार फोन मत करना आफिस में होता हूं जब समय मिलेगा तो खुद कर लूंगा।इतने में ही फोन कट चुका था अम्मा इधर से बोले जा रही थी बच्चा तनिक देर तो बात करि लियव ।

मैंने अम्मा को कहा कि आपके बेटे ने कहा है कि वह जल्द ही घर आयेगा और आकर खूब सारी बातें करेगा । अच्छा कुछू अंग्रेजी मा कहत रहा हम समझेन नहीं पाएन। बेटे की आने की बात मेरी मुंह से सुनकर अम्मा तो खुशी के मारे झूम गई अच्छा बिटिया हम जाइत है ।कुछ तैयारी कर लेई कब आ जाये पता नहीं, और वे जैसे ही घर की तरफ चली तो उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था कि उनकी कमर सीधी हो गई अब उन्हें उस लाठी कि भी जरूरत नहीं।जिसे वो इतने दिनों से सहारा बनाती आयी हैं। अम्मा तो चली गई लेकिन मेरे पैर नहीं बढ़ रहे मैं सोचने लगी कि अगर अम्मा का बेटा ——। क्या वे हमेशा इतनी खुश रह पायेगी ?वे कब तक आपने बेटे का इंतजार करेंगी या फिर —–। मेरे ऊपर भी गुस्सा होगी पता नहीं मुझे माफ़ कर पायेगी या —-। अनेकों सवाल थे। अम्मा का तो अब पता नहीं लेकिन सवालों के जवाब अभी भी नहीं मिले हैं उनका अभी भी —–।

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ये क्या / रत्ना सिंह | Short Story Ye kya in hindi

ये क्या / रत्ना सिंह | Short Story Ye kya in hindi

ये क्या– रोज की तरह आज भी फोन की घंटी बजी बिना उठा ही मैंने समझ लिया कि सतीश ही होगा। वही फोन करता है इतनी सुबह वरना तो कोई उसे इतनी सुबह पूछता ही नहीं। मैंने लपक के फोन उठाया और फुसफुस करके बतियाने लगी। इतने धीरे-धीरे क्यों बोल रही हो, मैंने कहा अरे !पागल किचन में मां है कहीं सुन लेगी तो मेरी खटिया खड़ी हो जाएगी। तब तक मां की आवाज आई बेटा इधर आओ मैं तो यहां कोई और ही चीज में व्यस्त थी ।आई मां झट से फोन काट कर उठ गई। सुनो बेटा आज डॉक्टर के यहां चलना है तुमको मां ने कहा। ठीक है मां! और मैं जल्दी-जल्दी नहा कर हम दोनों डॉक्टर के यहां गए मां ने डॉक्टर को सारी बात बताई जो लक्षण थे हमें शरीर का सूखना खाना ना खाना बाल का झड़ना आदि। मां की बात सुनकर डॉक्टर ने कहा ठीक है आप इनका टेस्ट करवा लीजिए।

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जी ठीक है! कहकर हम दोनों टेस्ट करवाने चले गए रिपोर्ट शाम तक आना था इसलिए घर वापस आ गए। मैं फोन को घर पर ही छोड़ गई आकर देखा तो सतीश की हजारों मिस्ड कॉल पड़ी मिली। मैंने उसे फोन किया फोन उठाते ही उसका चिल्लाना शुरु इतनी देर से कहां थी? किससे मिलने गई कितने आशिक बना रखे हैं ना जाने कितनी बातें सुनाने लगा, और फोन काट दिया मैं वहीं जमीन पर बैठ कर रोने लगी रोते-रोते कब सो गई पता ही नहीं चला? शाम के करीब 5:00 बज गए मैंने सतीश को महज अपनी रिपोर्ट के बारे में बताने के लिए फोन लगाया उसका फोन व्यस्त देखकर मेरा माथा ठनका (यह तो मुझे बिना मतलब में क्या-क्या सुना सुना रहा था और खुद—-)। मैं कॉल पर कॉल करती गई करीब 1 घंटे के बाद कॉल रिसीव करके बोला मेरे घर पर मेहमान आए हैं बाद में बात करूंगा मैंने दोबारा कॉल लगाया तो नंबर बंद। मैंने न आव देखा न ताव सीधी सतीश के घर जा धमकी वहां पहुंचकर जो देखा उसे देखने का सामर्थ्य मुझ में नहीं था मेरा शरीर गुस्से से कांपअपने लगा गुस्सा भी सातवें आसमान पर पहुंच गया मैंने खींचकर सतीश के गाल पर थप्पड़ जड़ दिया ,और उसके दोनों कंधे झकझोर कर पूछा अब बताओ तुम्हारे कितने आशिक या मेरे?

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वह फिर भी लड़की की बाहों में बाहें डाल कर खड़ा रहा रोज फोन करके दुनिया भर की बातें सुनाने वाले सतीश साहब बताइए कि तुम्हारे साथ क्या बर्ताव करूं? तुम जो कहोगे वही बर्ताव करूंगी। लेकिन हां मुझे कमजोर मत समझना मैं लड़की हूं ना इसलिए तुम पर रहम करूंगी, और एक बात यह भी सुन लो मैंने तुमको इसलिए फोन किया था कि मेरी रिपोर्ट आ गई और मुझे कैंसर है मैं तो तुमको खुद अपने से अलग करके किसी दूसरी लड़की के साथ दुनिया बसाने के लिए कहने वाली थी। लेकिन चलो कोई नहीं तुमने तो—–। बस इतना ही कहूंगी की यह सब किसी और—-। लड़की हूं इसलिए ।सतीश की नजरें नीचे झुक गई और थोड़ी देर के लिए सन्नाटा छा गया।

Laghukatha Pareshani | लघुकथा परेशानी / रत्ना सिंह

Laghukatha Pareshani | लघुकथा परेशानी / रत्ना सिंह


परेशानी– एक कार्यक्रम में जाने के लिए नेताजी घर से निकले ही थे कि पार्टी का एक कार्यकर्ता दौड़कर पास आया और उनके कान में फुसफुसाते हुए कहने लगा कि अभी अभी सूचना मिली है कि आप के चुनावी क्षेत्र में एक लड़की का रेप हो गया है।
आखिर जिस बात का डर था वही हुआ अब उस कार्यक्रम को स्थगित करना पड़ेगा, और ड्राइवर से कहा कि जल्दी से गाड़ी निकालो हमारा वहां पहुंचना बहुत जरूरी है।
सब सत्यानाश हो गया!
लेकिन वहां का माहौल अभी बहुत खराब है अभी आप वहां मत जाइए कार्यकर्ता ने अपनापन दिखाते हुए कहा। बाद में अगर चुनाव नतीजे हमारे पक्ष में नहीं आए तो इसका जिम्मेदार कौन होगा? आखिर पार्टी हमें अपना काम ठीक से ना करने का नोटिस थमा कर बाहर कर देगी। इसलिए अभी हमारा वहां पहुंचना बहुत जरूरी है कि आखिर यह हुआ कैसे जिसको भी ऐसा करना था वह चुनाव—?
नेताजी को परेशानी में देखकर कार्यकर्ता कहने लगा कि वहां जिस लड़की के साथ दुष्कर्म हुआ वह दुष्कर्म करने वाला कोई और नहीं हमारी ही पार्टी का कार्यकर्ता है, और वहां का माहौल बिल्कुल भी ठीक नहीं है।
“क्या कहा तूने? अपनी ही पार्टी का कार्यकर्ता था? तो फिर यह तो आजकल आम बात है —–न इसमें हमारी क्या गलती? बिना मतलब मैं डरा दिया कमबखत ने—-। तुझे पता नहीं अभी पिछले ही दिनों एक मामला ऐसे ही रफा-दफा हुआ है वैसे यह भी हो जाएगा इसमें क्या?
नेता जी ने यह कहते हुए एक लंबी सांस छोड़ी उनके चेहरे पर अब तनिक भी परेशानी नहीं झलक रही थी।

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