दरवेश भारती के साथ आखिरी मुलाकात -आशा शैली

दरवेश भारती के साथ आखिरी मुलाकात -आशा शैली

संस्मरण आशा शैली के साथ 

पुरानी बात है, मैं हरियाणा के किसी मुशायरे से वापस लौट रही थी। अम्बाला रास्ते में हो और मैं डॉ महाराज कृष्ण जैन परिवार से मिलने न जाऊँ यह तो हो ही नहीं सकता। रात अम्बाला रुक कर मैं दूसरे दिन जिस बस में सवार हुई थी, हरवंश अनेजा उसमें पहले से ही बैठे थे। इस मुशायरे में यह मेरी उनसे पहली और आखिरी मुलाकात थी।
उस समय तक वे दरवेश नहीं बने थे। उनके साथ की सीट खाली थी। शायद हम लोग दिल्ली आ रहे थे। हमारी बातों का सिलसिला स्पष्ट है कि मुशायरे से चलकर ग़ज़ल तक आना ही था। मुझे यह तो याद नहीं कि हमने मुशायरे में क्या पढ़ा था पर यह ज़रूर याद है कि उन्होंने मेरी ग़ज़ल की जमकर तारीफ़ की थी और कहा था कि मैंने बहुत से कलाम सुने हैं मगर आपका कलाम उन सबसे अलग और पुख़्ता कलाम है। अपनी अलग पहचान बनाता।उसी सफर के दौरान दरवेश जी ने मुझे बताया था कि उनके पास उनके वालिद मोहतरम की लाइब्रेरी में बहुत सी बेशकीमती किताबें मौजूद हैं। उन्हीं में एक किताब मिर्ज़ा ग़ालिब के हमवक्त शोरा पर बहुत रोशनी डालती है, जिसमें मुस्लिम शोरा के दरम्यान एक हिन्दू शायर का बेहतरीन कलाम है। तब मैंने उनसे उस पर एक बड़ा सा लेख लिखने के लिए कहा था। मैं उसे अमीबा या और किसी रिसाले में देना चाहती थी, पर वे शायद ऐसा कर नहीं पाये क्योंकि उन्होंने मुझे बताया था कि वहाँ बहुत धूल मिट्टी पड़ी है, बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी किताब तलाशने में। मैंने बाद में भी बारहा उन्हें याद दिलाया, पर शायद वे नहीं कर पाये वरना आज एक और नायाब जानकारी हमारे पास होती। खैर, हम दोनों ने ही एक दूसरे के फोन नम्बर लिए और राब्ता बना रहा। मैंने अमीबा का सम्पादन किया तब भी उनसे कलाम मांगती रही और फिर शैलसूत्र का सफ़र शुरू होने तक वे दरवेश हो चुके थे। दरवेश भारती हमेशा ही शैलसूत्र का हिस्सा रहे हैं। मैं अपने कलाम पर भी मश्विरा मांग लेती थी और वे बिना झिझक मुझे नवाज़ते रहे। आज मैंने भी और दोस्तों की तरह एक अच्छा दोस्त और रहनुमा खो दिया है। क्या दुआ करें, किस किस की आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें। पता नहीं, मैं नहीं जानती कि यह किसका शेर है, पर मेरे ससुर जी इसे अक्सर पढ़ा करते थे और फिर मैंने इसे किसी अच्छे गायक, शायद जगजीत सिंह से भी सुना था जो आज अक्सर ज़ुबान पर ही रहता है

कमर बाँधे हुए, चलने को यां सब यार बैठे हैं
कई आगे गये, बाकी जो हैं तैयार बैठे हैं


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आशा शैली
वरिष्ठ लेखिका शायरा संपादक
नैनीताल

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