अनुभूति की अभिव्यक्ति-आकांक्षा “सिंह अनुभा”
अनुभूति (Feeling) किसी एहसास को कहते हैं। यह शारीरिक रूप से स्पर्श, दृष्टि, सुनने या गन्ध सूंघने से हो सकती है या फिर विचारों से पैदा होने वाली भावनाओं से उत्पन्न हो सकती है। संस्कृत मैं ‘अनुभूति’, ‘अनुभव’ का समानार्थी है। इसका अभिप्राय है साक्षात, प्रत्यक्ष ज्ञान या निरीक्षण और प्रयोग से प्राप्त ज्ञान में छायावाद काल नया सब नया अर्थ में प्रयुक्त होकर समीक्षात्मक प्रतिमान के रूप में स्थापित हुआ। छायावाद की वैयक्तिकता का सीधा संबंध अनुभूति से है। अनुभूति में जो सुख-दुखात्म बोध होता है वह तीखा और बहुत कुछ निजी होता है। अनुभूति की अभिव्यक्ति-आकांक्षा “सिंह अनुभा” हिंदी कविता में वक़्त कब बदलता है,भाव से यह भिन्न है। इस शब्द को शास्त्रीय गरिमा से मंडित करने का श्रेय आचार्य रामचंद्र शुक्ल को है।
अनुभूति की अभिव्यक्ति
वक़्त कब और कैसा है।
ये किसने जाना ?
वक़्त कब बदलता है।
ये किसने जाना ?
वक़्त कभी रुकता नहीं।
ये हमने जाना ।।
वक़्त सिर्फ बदलता रहता है।
ये हमने जाना ।।
लोग कहते हैं वक़्त के साथ चलो,
वक़्त के साथ चलना तो सीखा ।
पर वक़्त ने उसी वक़्त पर रुख बदल लिया।
और वक़्त पे खुद का साया बदल गया।
सच ये वक़्त कब और कैसा है।
ये हमने जाना ।।
वक़्त जो था पहले।
सोचा था शायद वैसा ही रहेगा।।
वक़्त जो चल रहा था।
सोचा था वो सही चलेगा।।
वक़्त और वक़्त की बातें वक़्त के साथ गुजर जाएँगी।
वक़्त नहीं रुका पर वक़्त के साथ क्या से क्या हो गया।।
सच ये वक़्त कब और कैसा रहेगा किसने जाना ।
कभी सोचा न था ये वक़्त भी आएगा।
गुजरी हुई तक़दीर का दीदार करायेगा।
क्या है आगे।क्या था पीछे उसका दर्पण दिखायेगा।
हमने फिर माना वक़्त सही है,– पर
वक़्त ने फिर से वक़्त पे आकर आइना दिखा दिया।
सच ये वक़्त कब और कैसा रहेगा।
ये हमने जाना ! हमने जाना ! हमने जाना।