”समय की लीला” | लघुकथा | रश्मि लहर

”समय की लीला”

छोटे साहब ने बड़े साहब को खुश करने के लिए जेल में रामलीला करवाने का मन बना लिया था। चार दिन की तैयारी के बाद आज फाइनल कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। मंत्री जी ने दोनों साहब लोगों को इनाम स्वरूप ‘आशीर्वाद’ दिया। बड़े साहब मंत्री जी के साथ चले गए। सब लोग सफ़ल आयोजन की ख़ुमारी में थे कि छोटे साहब की चीख सुनकर सब चौंक पड़े। 

छोटे साहब की प्रेयसी ‘सीता’ बनी कैदी को तो ढूॅंढ लिया गया था.. फिर? सब चिंतित कि.. “क्या हुआ?” 

जेल में अफरातफरी का माहौल पैदा हो गया था।  सब स्तब्ध! जितने मुॅंह उतनी बातें! छोटे साहब कमरे में बंद हो चुके थे। अचानक सिक्योरिटी गार्ड ने जो बताया उसको सुनकर सबके मुंह से चीख निकल पड़ी! उसने कहा –

“पता चला है कि सीता जी को ढूॅंढकर लाने वाले दो बंदर बने कैदी-नंबर 402 तथा 404 रामलीला समाप्त होने से पहले ही फरार हो गए!”

रश्मि ‘लहर’