उस साल चांँद निहार कर उतरते हुए जीने से गिर गई थी मैं। अफरा- तफरी मच गई थी पूरे घर में | संस्मरण | पुष्पा श्रीवास्तव ‘शैली
उस साल चांँद निहार कर उतरते हुए जीने से गिर गई थी मैं। अफरा- तफरी मच गई थी पूरे घर में।
“कौन गिरा?”
“अरे देखो!”
जेठानी जी तेज आवाज में- “अरे! देखो गुड्डी गिर गई!”
“अरे ! छोटी दीदी गिर गईं!” सब दौड़ कर आए गये।
“अरे मुझे चोट नहीं आई, मैं बिल्कुल ठीक हूॅं!” कहते हुए मैं भाव-विह्वल हो गई।
त्वरित निर्णय लिया गया कि अब अगली बार से पूजा नीचे आंँगन में ही होगी।
“अम्मा भी छत पर नहीं जा पातीं, वो भी आंँगन में बैठ पाएंँगी ।”
“हाँ -हाँ बिल्कुल।” सभी ने एक स्वर से सहमति जतायी।
बहुओं को सज -धज कर करवा चौथ की पूजा करते देख अम्मा बहुत खुश होती थीं ।
‘ठुक -ठुक’ डंडे की आवाज़ के साथ कभी मुझे निहारती कभी देवरानी को और कभी जेठानी को। वे पूरी तरह हमारे बीच शामिल हो जाना चाहतीं थीं।
फोटो खिंचवाते समय आंँगन के चाॅंद की तरह घूम -घूम हम सब को निहारतीं और खुश होकर कुछ गुनगुनाती।
“मेरी नथुनी उलझ गई देखो पिया”
आगे के बोल भूल जातीं, फिर कहतीं- ” राम राम बिसरि गयेन” और बिना दांँत के मुंँह से आह्लादित होकर हंँसती।
आज घर में पहले की तरह ही सब कुछ हुआ, हम सब घर की बहुएंँ सजीं , फोटो भी खींची गई। आंँगन में पूजा भी हुई, नीम के झुरमुट से आंँख-मिचौली करते हुए चाँद से भी मुलाकात हुई। पर मन! वो तो अम्मा की स्मृतियों में खोया रहा! अम्मा के घर पर न होने से उपजा खालीपन खुशियों पर भारी रहा!
आज अपनी खिलखिलाती हँसी से घर के कोने कोने में
सितारे टांँकने वाली अम्मा की लाडली पारियांँ भी नहीं आईं।
कहाॅं चली गई थीं अम्मा! कहाॅं गया वह आंँगन में ठुक- ठुक की आवाज़ करने वाला चांँद? आज नहीं मिला पूजा के बाद पांँव छूने पर पीठ पर देर तक फिरने वाला वह थरथराता सा हाथ! वह सदियों तक गूॅंजने वाला आशीर्वाद –
“बनीं रहौ बच्ची,अहिवात बना रहे”!
मेरे मुॅंह से सहसा निकला-“अम्मा तुम्हारा यह आशीष इस घर पर अक्षत रहे!” और तभी मेरी भरी-भरी ऑंखों ने भी सिसकते हुए धीरे से कहा -“प्रणाम माँ!”
पुष्पा श्रीवास्तव ‘शैली’