हिन्दी की लोकप्रियता के साथ बढ़‌ता जनाधार

हिन्दी की लोकप्रियता के साथ बढ़‌ता जनाधार

भाषा के बिना समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। मजबूत और सुदृढ़ राष्ट्र की एकता को बनाए रखने के लिए राष्ट्रभाषा का होना उतना ही आवश्यक है, जितना जीवित रहने के लिए ‘आत्मा’ का होना आवश्यक है।
हिंदी भाषा की जब भी बात होती है तो, मन में 14 सितंबर, हिंदी दिवस गूंजने लगता है। तत्क्षण बैंकिंग सेक्टर, चिकित्सा क्षेत्र, अभियांत्रिकी क्षेत्र, आईसीएसई, सीबीएसई बोर्ड के स्कूल, सोशल मीडिया, हिंग्लिश आदि की ओर अंतःमन का ध्यानाकर्षण होने लगता है। हम सब मिलकर चिंतन करें कि आखिर 72 वर्ष बाद भी हिंदी राष्ट्रभाषा क्यों नहीं बन पाई है? वोट की राजनीति या विभिन्न सरकारों में इच्छाशक्ति की कमी या क्षेत्रवाद? या भौतिकवादी समाज में खुद को श्रेष्ठ दिखाना? कारण जो कुछ भी हो, हम कह सकते हैं कि हिंदी अपने ही देश में बेगानी होती जा रही है।
हिंदी का प्रत्येक व्यंजन और स्वर मुख्यतः अर्धचंद्र और बिंदी से बना है। यदि हम हिंदी लिखते समय सुकृत बिंदी और अर्धचंद्र का प्रयोग आवश्यकतानुसार करें, तो सभी वर्ण शब्द वाक्य अति सुंदर तथा सुडौल बनेंगे। हिंदी के उद्भव की बात करें तो, विश्व की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत है, तत्पश्चात क्रमानुसार पालि–प्राकृत–अपभ्रंश तब हिंदी का विकास हुआ है।

सर्वप्रथम महात्मा गांधी ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की पहल की थी


गुरु गोरखनाथ, लल्लू लाल, सरहपा हिंदी के प्रथम गद्य लेखक/रचनाकार माने जाते हैं। चंद्रवरदाई, मालिक मोहम्मद जायसी, खुसरो, अब्दुल रहमान, संत रैदास, सूरदास, तुलसीदास, बिहारी, मीराबाई, नाभादास भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा आदि ने हिंदी में अपनी विभिन्न विधाओं रचनाएं लिखा है, जो आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल से हिंदी प्रचलन में होने का प्रमाण है। उत्तर प्रदेश में रायबरेली जनपद के ग्राम दौलतपुर निवासी, हिंदी के पुरोधा आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सन 1903 में ‘सरस्वती’ पत्रिका का संपादन किया, तब वे ब्रिटिश शासनकाल में रेलवे में नौकरी करते थे। उसी वर्ष द्विवेदी जी ने राष्ट्रप्रेम और हिंदी के उत्थान के लिए अंग्रेजों से मन मुटाव हो जाने के कारण रेलवे की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था। स्वतंत्र भारत से पूर्व सन 1918 ईस्वी में सर्वप्रथम महात्मा गांधी ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की पहल की थी। भारतीय संविधान के भाग 17 में वर्णित अनुच्छेद 343 से 351 तक संघ की भाषा, उच्चतम तथा उच्च न्यायालयों की भाषा, प्राथमिक शिक्षा, मातृभाषा में देने का उल्लेख है। हम गर्व के साथ कहते हैं कि विश्वपटल पर हिंदी दूसरे पायदान पर है। दिनांक 10 जनवरी सन् 2017 को दैनिक जागरण के मुखपृष्ठ पर प्रकाशित शीर्षक “दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बनी हिंदी” के अंतर्गत मुंबई विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉक्टर करुणा शंकर उपाध्याय ने अपनी पुस्तक ‘हिंदी का विश्व संदर्भ’ में यह उल्लेख किया है कि हिंदी विश्व पटल पर सर्वाधिक बोली जाती है।


हिंदी का विकास कैसे हो?


सरकारी, गैर सरकारी कार्यालयों में जो व्यक्ति कार्यालयी कार्य हिंदी में करे, उसे अतिरिक्त वेतन, अतिरिक्त अवकाश तथा अहिंदी भाषी राज्यों में भ्रमण हेतु पैकेज दिया जाना चाहिए। हिंदी विषय के विभिन्न साहित्यकारों और अन्य ज्ञानोपयोगी बिंदुओं पर शोधकार्य होना चाहिए, जिसके लिए सरकार और विश्वविद्यालयों को पहल करनी होगी। हिंदी को प्रोत्साहन देने के लिए संपूर्ण भारत के सभी स्कूलों में हिंदी विषय में प्रथम श्रेणी प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को अन्य विद्यार्थियों की अपेक्षा अतिरिक्त छात्रवृत्ति, प्रशस्ति पत्र और अधिभार अंक मिलना चाहिए, जिससे छात्रों का हिंदी प्रेम और मनोबल बढ़े। महानगरों की ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं वाले स्कूलों में छात्रों और अभिभावकों से हिंदी में ही वार्तालाप किया जाए। हिंदी को पाठ्यक्रम का एक हिस्सा मानकर नहीं, वरन मातृभाषा के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए।
हिंदी आध्यात्मिकता, दर्शनिकता से परिपूर्ण, भावबोध से ही दूसरों के मन की बात समझने वाली l वैज्ञानिक शब्दावली की भाषा है। हिंदी भाषा में स्वर और व्यंजनों के उच्चारण कंठ, तालु, होष्ठ, नासिका आदि से निर्धारित अक्षरों में किए जाते हैं। ऐसा वैज्ञानिक आधार अन्य भाषाओं में नहीं मिलेगा। हिंदी में जो लिखते हैं, वही पढ़ते हैं- जैसे ‘क’ को ‘K क’ ही पढ़ेंगे। अंग्रेजी में ‘क’ को Ch, Q, C, K लिखते या पढ़ते हैं। हिंदी “अ” अनपढ़ से शुरू होती है और “ज्ञ” ज्ञानी बनाकर छोड़ती है, जबकि अंग्रेजी A apple से शुरू होकर Z zebra जानवर बनाकर छोड़ती है।
अखिल विश्व की प्रमुख भाषाओं में चीनी भाषा में 204, दूसरे स्थान पर हिंदी में 52, संस्कृत में 44, उर्दू में 34. फारसी में 31, अंग्रेजी में 26 और लैटिन भाषा में 22 वर्ण होते हैं। हिंदी की महत्ता और वैज्ञानिक पद्धति को समझते हुए देश में सर्वप्रथम बनारस हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी के आईआईटी विभाग ने अपने पाठ्यक्रम को हिंदी भाषा में पढ़ने-पढ़ाने की अनुमति प्रदान की है।
गर्व की बात है कि माननीय उच्च न्यायालय, प्रयागराज के न्यायमूर्ति श्री शेखर कुमार यादव ने “स्व का तंत्र और मातृभाषा” विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए अधिवक्ताओं से कहा था कि आप हिंदी में बहस करें, मैं हिंदी में निर्णय दूँगा। साथ ही कहा कि 25 प्रतिशत निर्णय में हिंदी में ही देता हूँ।
विश्वविद्यालयों की वार्षिक, सेमेस्टर परीक्षाओं में वर्णनात्मक या निबंधात्मक प्रश्नोत्तर लगभग समाप्त करके बहुविकल्पीय प्रश्नपत्रों को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। इस विकृत व्यवस्था से नकल को बढ़ावा तो मिला ही, साथ-साथ विद्यार्थी के अंदर लिखने-पढ़ने का कौशल तथा भाषाई ज्ञान समाप्त हो रहा है। ऐसा लगता है कि सरकार को खुश करने के लिए कुछ विश्वविद्यालयों के नीति नियंता अब भी बहुविकल्पीय प्रश्नपत्र प्रणाली लागू करते देश को गर्त में ले जाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं? हमें स्मरण रखना चाहिए कि आम–खास सभी की पारिवारिक संतानें आने वाले समय में पठन, पाठन, लेखन क्षेत्र में मानो अपंग हो जाएंगी। निवेदन पूर्वक आग्रह है कि बहुविकल्पीय प्रणाली समाप्त किया जाना चाहिए। कम समय में अधिक ज्ञान प्राप्त करने के भ्रम में युवा पीढ़ी की भाषा, तार्किक शक्ति क्षीण होती जा रही है । उदाहरण स्वरूप विद्यार्थी, युवा और र्बुजुर्ग नर–नारी व्हाट्सएप विश्वविद्यालय के चक्कर में पड़कर अंग्रेजी या हिंदी की संक्षिप्त भाषा को अपने जीवन और लेखन में उतरने लगे हैं। इतना संक्षिप्त भाषाई प्रयोग से न हिंदी का सही व्याकरणीय ज्ञान का बोध करा पा रहा है, न अंग्रेजी का। जैसे प्लीज को Plz , थैंक्स को Thnx, मैसेज को Msg, हम को Hmm लिखने का प्रचलन खूब चल रहा है। जो आने वाली पीढ़ी के लिए घातक है।
कोविड-19 का दुष्प्रभाव भी बच्चों बूढ़ों पर बहुत पड़ा
है। इसके कारण 2 वर्षों से अधिक समय तक स्कूली, पुस्तकीय और प्रयोगात्मक पढ़ाई न हो पाने के कारण वास्तविक ज्ञानार्जन की समस्या उत्पन्न हुई है। विद्यार्थियों में भाषाई, उच्चारण और व्याकरण की समस्या दूर करने के लिए शिक्षकों के साथ-साथ अभिभावकों को भी आगे आना होगा। अभिभावक गण अपने पाल्यों की कॉपियां देखें और त्रुटियों की ओर उनका ध्यानाकर्षण करें।

हिंदी दिलों को जोड़ने वाली मातृभाषा

अंग्रेजी व्यापारिक भाषा है तो हिंदी दिलों को जोड़ने वाली मातृ भाषा। हिंदी माँ है, तो उर्दू मौसी और संस्कृत तो सभी भाषाओं की जननी है। इसका गहनता से अध्ययन करते हुए हिंदी भाषा को सशक्तिकरण के रूप में अपनाना होगा। प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाने का तात्पर्य यह नहीं है कि हिंदी पीछे है या कमजोर है। इस महत्वपूर्ण दिन को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने का उद्देश्य है- हिंदी को सम्मान देना। इस सम्मान की गरिमा बनाए रखने के लिए देवनागरी लिपि हिंदी को यथाशीघ्र राष्ट्रभाषा घोषित किया जाना चाहिए।

कभी-कभी मैं स्वयं हतप्रभ रह जाता हूँ कि 21 अगस्त सन 2021 को हिंदुस्तान समाचार पत्र में प्रकाशित खबर के अनुसार प्रवक्ता पद के प्रश्नपत्र में 90% व्याकरण सम्बन्धी और अक्षरों की त्रुटियां थी। प्रतियोगी परीक्षाओं में इतनी अधिक त्रुटियों होना हम सब को कटघरे में खड़ा करता है। यह योग्यता में कमी या इच्छाशक्ति में कमी या हिंदी के प्रति दुव्यवहार दर्शाता है? आखिर हमारी शैक्षिक पद्धति कहाँ जा रही है?
अंत में इतना ही कहना चाहूँगा- अंग्रेजी के अल्पज्ञान ने हिंदी को पंगु बना दिया।

डॉ० अशोक कुमार गौतम, असिस्टेंट प्रोफेसर,
शिवा जी नगर, आईटीआई, रायबरेली उप्र
दूरभाष– 9415951459