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लघुकथा | एक नई रोशनी -सविता चडढा

लघुकथा | एक नई रोशनी -सविता चडढा

उस दिन बाप बेटे में तकरार शुरू हो गई। देर रात बेटे ने कुछ ज्यादा ही पी ली थी। बाप ने समझाने की कोशिश की लेकिन तकरार बढ़ते-बढते बहुत सारी हदें पार कर गई । तकरार के बाद धक्का-मुक्की शुरू हुई और बेटे ने बाप पर हाथ उठा दिया।  बाप  चोटिल हो गया। 

अगले दिन  बाप ने सोचा भगवान से ही जाकर पूछता हूं । सुबह उठने पर जब वह धीरे-धीरे मंदिर की सीढ़ियां चड़ रहा था तो उसे एक महिला ने पूछा “अंकल  आपको क्या हुआ ।” उसने नजरें उठाई और देखा , ये तो गुणवंती की बहू है । उसने घर ,अपने  सम्मान को बचाने की फिज़ूल कोशिश करते  हुए इतना ही कहा “भगवान का शुक्र मनाओ गुणवंती की बहू ,भगवान ने तुम्हें तीन बेटियां ही दी है।  बेटियां कभी बाप पर हाथ नहीं उठाती। गुणवंती की बहू ने एक नई रोशनी महसूस की और भगवान का आभार प्रकट किया।

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डॉ. अंबेडकर के राष्ट्रवादी विचार | Nationalism thoughts of Dr Ambedkar

डॉ. अंबेडकर के राष्ट्रवादी विचार | Nationalism thoughts of Dr Ambedkar

“जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता हांसिल नहीं कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके किसी काम की नहीं।”

– डॉ भीमराव अम्बेडकर

बाबा साहब डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर का जीवन परिचय / Dr Bhim Rao Ambedkar Biography in Hindi

भारत रत्न, ज्ञानवान, दूरदृष्टा, अर्थशास्त्री, मुक्तिदाता, संविधान निर्माता, समता मूलक भाव रखने वाले, करुणा, मैत्री और बंधुत्व की भावना से परिपूर्ण बाबा साहब डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल सन 1891 को मध्य प्रदेश राज्य के इंदौर जिला में महू सेना छावनी में हुआ था। डॉ. अंबेडकर के पिता का नाम राम जी राव और माता का नाम भीमाबाई था। डॉ. अंबेडकर अपने पिता की चौदहवीं संतान थे। डॉ. अंबेडकर के अलावा उनके दो भाई बलवंत और आनंद राव तथा उनकी दो बहनें मंजुला और तुलसा ही जीवित रह पाई थी। डॉ. अंबेडकर जब मात्र 5 वर्ष के थे तभी उनकी माता भीमाबाई का निधन 1896 ईस्वी को हो गया था। बचपन में ही माता का साया सिर से उठ गया तब उनकी बुआ मीराबाई ने माँ की कमी नहीं होने दी और उनका लालन-पालन बड़े स्नेह से किया। अबोध बालक भीमराव के पिता राम जी राव सेना में सूबेदार पद से सेवानिवृत्त हो चुके थे। पिता ने मराठा विद्यालय में उनका दाखिला करा दिया। भीमराव अंबेडकर का जन्म अछूत (महार) जाति में होने के कारण प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए बहुत बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। उन्हें विद्या ग्रहण करने के लिए कमरे से बाहर (जहाँ जूता चप्पल उतारे जाते थे के पास) बैठकर पढ़ना पड़ता था। अन्य मराठा छात्र उनके साथ अमानवीय व्यवहार करते थे, किताब-कॉपी नहीं छूने देते थे। यहाँ तक अंबेडकर अपने हाँथों से घड़ा का पानी निकाल कर भी नहीं पी सकते थे, दूसरे विद्यार्थी दूर से पानी पिलाते थे। बाबा साहब उसी प्रकार स्कूल में दबकर रहते थे, जिस प्रकार 32 दाँतों के बीच जीभ रहती है। बालक भीमराव अंबेडकर अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार को सीने में दफन करके अपनी पढ़ाई की ओर ध्यान देते थे क्योंकि पढ़ने की असीम चेष्टा उनके अंदर विद्यमान थी। डॉ आंबेडकर जब 14 वर्ष के हुए तभी उनका विवाह 9 वर्ष की रमाबाई से कर दिया गया था। जैसे-जैसे अंबेडकर बड़े होते गए उनके जीवन में समस्याएं भी बढ़ती गई। जलती छुआछूत का प्रकोप आपको अपमानित करता था, लताड़ता था। वह जीवन जिया है आपने। आज की पीढ़ी तत्कालीन भारतीय समाज में निम्न जाति के प्रति घृणित और दूषित भावना की कल्पना भी नहीं कर सकती है।

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उदार प्रवृत्ति के बाबा साहब के जीवन में सबसे दुःखद समय तब आया जब उनकी प्रिय पत्नी जो हर समय सुख-दुःख में साथ खड़ी रहती थी, जिन्हें प्यार से रामू कह कर पुकारते थे वह बीमार हो गई और गरीबी के कारण इलाज न होने के कारण सन 1935 में स्वर्गवासी हो गईं। उस समय अंबेडकर ने खुद को अकेले महसूस किया। दुःख की इस घड़ी में टूट गए थे, हताश हो गए थे किंतु आपके अंदर एक अटूट विश्वास और अदम्य साहस था जिसके बल पर आपने स्वयं को वह जंग लड़ने के लिए तैयार किया जिसके लिए पृथ्वी पर आपका जन्म हुआ था। वह जंग थी ‘शूद्र स्वतंत्रता।’ अम्बेडकर जी ने 20 मार्च सन 1927 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के महाड़ स्थान पर दलितों के साथ चवदार तालाब में अपने हाँथ से पानी पीकर पानी का अधिकार प्राप्त किया था। 25 दिसम्बर सन 1927 को महाड़ तालाब के किनारे पुरुष सत्तात्मक और वर्ण के आधार पर भेदभाव करने वाला ग्रंथ मनुस्मृति का दहन किया था। मनुस्मृति में लिखा है- स्त्रीशूद्रो नाधीयताम अर्थात स्त्री औऱ शूद्र ज्ञान प्राप्त न करे।

मनुस्मृति के अनुसार अन्य वर्णों के लिए अपराध पर आर्थिक दंड का प्रावधान था, जबकि शूद्रों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान था- शतं ब्राह्मण मकृष्य क्षत्रियों दंडं अहर्ति। वैश्यों व्यर्थ शतं द्वेवा, शूद्रस्तु वधम अहर्सि। (मनुस्मृति 8/267)। मनुस्मृति के पदचिन्हों पर चलते हुए तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है- पूजिअ विप्र सील गुन हीना। शूद्र न गुन गन ग्यान प्रबीना।। (अरण्यकाण्ड 1/34)

भारत में डॉक्टर अंबेडकर के जीवन में जातिवाद का ज़हर घोलने वाले हजारों दुश्मन चारों ओर मधुमक्खियों की तरह फैले हुए थे, किंतु आपकी प्रतिभा, नेक इरादे, प्रबल इच्छा शक्ति एवं ओजस्वी विचारधारा के आगे दुश्मन सदैव नतमस्तक थे। डॉ. अंबेडकर के विषय में हम कह सकते हैं कि यह संसार एक सौरमंडल की तरह है और आप उस सौरमंडल का सूर्य।
डॉक्टर अंबेडकर धन्य हैं जिनके पास अदम्य साहस, हिमालय पर्वत के समान दृढ़ संकल्पित इरादे जिन्हें डगमगाने की इस दुनिया में किसी के पास साहस न था। आपके आगे पूरा विश्व नतमस्तक हो गया था। इसी असीम ज्ञान के कारण समस्त मानव जाति का प्रेरणास्रोत बन गए।

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सन 1947 में जब भारत अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुआ तब इस भारतीय लोकतंत्र को संचालित करने का कोई नियम व कानून नहीं था, इसलिए भारतीय संविधान जो विश्व का सबसे बड़ा संविधान और सबसे बड़ा लोकतंत्र को संचालित करता है को तैयार करने की किसी अन्य के पास योग्यता न थी, तब डॉ आंबेडकर को एक टीम के साथ इस नेक एवं बड़े महत्वपूर्ण कार्य के लिए उपयुक्त माना गया, किंतु सभी लोग किसी न किसी कारण से अलग हो गए। तब डॉ. अंबेडकर को सौंपी गई एक बड़ी जिम्मेदारी को अपनी कठोर मेहनत और लगन से निष्ठापूर्वक 18 घंटे लगातार काम करके बखूबी निभाया। इस बीच डॉक्टर अंबेडकर को मधुमेह हो जाने के कारण स्वास्थ्य खराब होने लगा फिर भी उन्होंने अथक प्रयासों के बाद 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में भारतीय संविधान पूर्ण किया। लगभग 6.4 करोड़ रुपये खर्च हुए। प्रारूप पर 114 दिन बहस चली। मूल संविधान में 22 भाग, 8 अनुसूचियाँ और 395 अनुच्छेद हैं। प्रमुख अंश विभिन्न देशों से भी लिए गए हैं। भारत का संविधान 26 नवम्बर सन 1949 को बनकर तैयार हुआ और 26 जनवरी सन 1950 को लागू हुआ। विश्व का सबसे बड़ा संविधान भारत का है। संविधान की मूल प्रति हिंदी और अंग्रेजी भाषा में हस्तलिखित है। भारतीय संविधान को राष्ट्रीय ग्रंथ की उपाधि दी गई है। उससे भारत का लोकतंत्र संचालित होता है और उसका सम्मान सभी भारतीय हृदय से करते हैं। दिन प्रतिदिन बिगड़ते स्वास्थ्य का इलाज महाराष्ट्र के एक अस्पताल में करा रहे थे। उन दिनों उनकी देखभाल करने वाला कोई जिम्मेदार व्यक्ति नहीं था अस्पताल की नर्स शारदा कबीर (ब्राम्हण) उनकी देखभाल जिम्मेदारी के साथ कर रही थी। इस कारण शारदा का स्नेह डॉक्टर अंबेडकर के प्रति बढ़ता गया और सन 1948 में नर्स के साथ अंबेडकर का विवाह संपन्न हो गया। विवाह बाद शारदा कबीर का नाम बदलकर सविता अंबेडकर नाम रखा गया।

डॉ. अंबेडकर प्रारंभ से ही हिंदू धर्म में समावेशित उन कुरीतियों और कुप्रथाओं के आलोचक रहे हैं, जो मानवता के खिलाफ थीं। हिंदू धर्म प्रारंभ से ही ऊँच-नीच में विश्वास करता रहा है जो मानवता के बिल्कुल प्रतिकूल है।शूद्र जातियों के साथ कुत्ते बिल्लियों से बदतर व्यवहार किया जाता था। शूद्र लोग जब पगडंडियों से निकलते थे तो कमर में झाडू, गले में मटका बाँधकर ही निकलते थे। अंबेडकर ने हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध आदि धर्मों का गहनता के साथ अध्ययन किया। अंततः आप बौद्ध धर्म से प्रभावित हुए और 14 अक्टूबर 1956 को 22 प्रतिज्ञा के साथ आपने अपनी पत्नी और लगभग 5,00000 अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार किया। डॉक्टर अंबेडकर बौद्ध धर्म के सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए श्रीलंका, म्यांमार गए। डॉ. अंबेडकर ने अपना अंतिम लेख ‘द बुद्ध एंड हिज धम्म’ सन 1956 में पूर्ण किया था। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की पहचान बुद्ध से है। डॉक्टर अंबेडकर बीसवीं सदी के सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में प्रसिद्ध हुए। डॉक्टर अंबेडकर एक विश्व प्रसिद्ध शख्सियत थे जिन्होंने गरीबों, वंचितों, महिलाओं, बच्चों मजदूरों आदि की आवाज बुलंद की। डॉक्टर अंबेडकर कहते थे शिक्षा वह शेरनी का दूध है जो पियेगा दहाड़ेगा इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि डॉक्टर अंबेडकर के अंदर ज्ञान की गंगा बहती थी। डॉक्टर अंबेडकर को अमेरिका में ज्ञान का प्रतीक Symbol of Knowledge कहा जाता है, तो वहीं भारत में दुर्भाग्य है कि आपके पुतले तोड़े जाते हैं, गाली दी जाती हैं और उन्हें अपमानित किया जाता है। डॉक्टर अंबेडकर किसी एक जाति के नहीं थे वरन सभी के उद्धारक थे किंतु अफसोस होता है छोटी जाति में पैदा होने के कारण उनके साथ समानता के व्यवहार आज भी नहीं किया जाता है।

सर्वविदित है उस समय शूद्र अछूत कहे जाने वाले समाज को शिक्षा अर्जित करना हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार दंडनीय व प्रतिबंधित था और धर्म का उल्लंघन भी। मान्यता थी कि मनुस्मृति के अनुसार शूद्र सिर्फ अपने जाति आधारित कर्म करेगा, इसके अलावा कुछ भी नहीं करेगा। जब डॉक्टर अंबेडकर को शिक्षा ग्रहण करने की बात आई तो सामंतवादी व्यवस्था प्रणाली में अंबेडकर को स्कूल में दाखिला लेने से इनकार कर दिया गया। उनके अंदर शिक्षा प्राप्त करने की असीम जिज्ञासा थी वह इसके लिए किसी भी रास्ते से गुजरने को तैयार थे। अंबेडकर साहब अपना पूरा ध्यान पठन-पाठन में लगाते थे, किंतु कक्षा के अन्य बच्चे उस अबोध निरीह बालक को अछूत महार कह कर उसके साथ अनुचित व्यवहार करते थे। डॉक्टर अंबेडकर अपने साथ ज्यादती को महसूस करते और सहन भी करते थे, किंतु उनका कोई साथी ही न होने कारण अपमान के कड़वे घूंट पीने के लिए मजबूर थे। उस दर्द को सीने में दफन कर लेते थे और अपने जीवन में लक्ष्य की ओर अग्रसर करते रहते थे। तनिक भी समय नष्ट नहीं करते थे। अंबेडकर ने मैट्रिक परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। स्नातक परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की, तत्पश्चात पिता का देहावसान हो गया तब उन्हें एक बड़ा झटका लगा। वह दिन उनके जीवन का सर्वाधिक दुखद दिन था। आर्थिक समस्या से जूझ रहे अंबेडकर की शेष शिक्षा बाधित होने लगी थी लेकिन कहते हैं परिश्रमी का साथ ईश्वर भी देता है। तो अंबेडकर की प्रतिभा से प्रभावित होकर महाराष्ट्र के बड़ौदा नरेश सयाजी राव गायकवाड ने उनके आगे की पढ़ाई पूर्ण करने की जिम्मेदारी लेकर उन्हें 25 रुपये मासिक छात्रवृत्ति देने की घोषणा की, इस शर्त के साथ कि अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद 10 वर्ष बड़ौदा रियासत में सेवा करेंगे। डॉक्टर अंबेडकर ने आगे की शिक्षा, वकालत, शोधकार्य, डॉक्टरेट उपाधियाँ अमेरिका, लंदन, ओसामिया में जाकर पूर्ण किया। हमारे लिए बड़ा ही गौरवशाली व्यक्तित्व था जिसने देश-विदेश तक अपने ज्ञान का परचम लहराया। त्याग, परिश्रम व लंबे संघर्ष के बाद शिक्षा जगत में अपना अद्वितीय स्थान रखने वाले प्रथम भारतीय बन गए। डॉक्टर अंबेडकर के अंदर विद्यमान अपार ज्ञान सदैव अतुलनीय रहेगा क्योंकि आप स्वयं विश्व प्रेरक हैं। आपका कहना था जिस समाज में व्याप्त वर्षों पुराने कृतियों का अंत करना है तो व्यक्ति को पूर्ण शिक्षित होना पड़ेगा तभी सभी बुराइयों को नष्ट कर सकते हैं, इसलिए ‘शिक्षित बनो संगठित रहो।’ बाबा साहब स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री 15 अगस्त 1947 से सितंबर 1951 तक रहे। 29 अगस्त 1947 से 24 जनवरी 1950 तक मसौदा समिति के अध्यक्ष थे। 3 अप्रैल 1952 से 6 दिसम्बर 1956 तक राज्यसभा सदस्य थे।

भारत राष्ट्र को बाबा साहब की देन
(स्रोत : पुस्तक- भारतरत्न भीमराव अंबेडकर, लेखक डॉ एम.एल. परिहार, प्रकाशक बुद्धम पब्लिशर्स जयपुर)

  • रोजगार कार्यालय की स्थापना, कर्मचारी राज्य बीमा निगम,
  • काम का समय 12 घण्टे से कम करके 8 घण्टा,
  • महिलाओं को प्रसूति अवकाश, मंहगाई भत्ता,
  • अवकाश का वेतन,
  • हेल्थ इंश्योरेंस,
  • कर्मचारी भविष्य निधि,
  • श्रमिक कल्याण कोष,
  • तकनीकी प्रशिक्षण योजना,
  • सेंट्रल सिचाई आयोग का गठन
  • वित्त आयोग का गठन,
  • मतदान का अधिकार,
  • भारतीय सांख्यकीय कानून,
  • हीराकुंड बाँध,
  • दामोदर घाटी परियोजना,
  • ओडिशा नदी परियोजना,
  • भाखड़ा नागल बाँध,
  • भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना।


मधुमेह के कारण बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर का स्वास्थ्य बिगड़ता ही चला गया है और युगपुरुष डॉक्टर अंबेडकर 65 वर्ष की उम्र में 6 दिसंबर सन 1956 गुरुवार की रात चिरनिद्रा में हमेशा के लिए लीन हो गए। आपकी स्मृतियों को संजोने के लिए मुम्बई के चैत्यभूमि में भव्य समाधि स्थल बनाया गया है।

अशोक कुमार गौतम
असिस्टेंट प्रोफेसर
शिवा जी नगर, दूरभाष नगर
रायबरेली (उप्र)
मो. 9415951459

डॉ. चुम्मन प्रसाद श्रीवास्तव का जीवन परिचय | Dr. Chumman Prasad Srivastava Biography in hindi

आदित्य अभिनव उर्फ़ डॉ. चुम्मन प्रसाद श्रीवास्तव का जीवन परिचय | Dr. Chumman Prasad Srivastava Biography in Hindi

हिंदी साहित्य का वो नाम जो किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है। वर्तमान हिन्दी के उन्नयन की कहानी में प्रभावशाली योगदान का संकल्प मुखरित हुआ डॉ. चुम्मन प्रसाद श्रीवास्तव के द्वारा। किसी के व्यक्तित्व पर लिखना एक उलझन पूर्ण और चुनौती भरा कार्य है। वह व्यक्ति विशेष यदि रचनाकार हो तो मुश्किलें और बढ़ जाती है क्योकि उसके बाहर -भीतर की अपेक्षा एक समानान्तर संसार की हलचल सदैव उपस्थित रहती है। उसी से वह भाव ग्रहण करता है और उसी पृष्ठभूमि से अनुभूति ग्रहण कर अपनी लेखनी से कुछ समाज के जिन पड़ावों मोड़ो से होकर गुज़रता है वही उसके सौन्दर्य की निरन्तरता बन जाती है। बाह्य और अन्तस के समानुपात में वह सादगी और सौम्यता के लिए संदेश देकर मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से सचेतन रचनाकार की श्रेणी में पहुँच जाता है। साहित्य में डॉ. चुम्मन प्रसाद श्रीवास्तव एकांत भाव में स्वान्तः सुखाय सर्जन करने वाले रचनाकार है।

आदित्य अभिनव उर्फ़ डॉ. चुम्मन प्रसाद श्रीवास्तव का जीवन परिचय Dr. Chumman Prasad Srivastava Biography in hindi )

क्रमांकजीवन परिचय बिंदुडॉ. चुम्मन प्रसाद श्रीवास्तव जीवन परिचय
1.       पूरा नामडॉ. चुम्मन प्रसाद श्रीवास्तव
2.       अन्य नामआदित्य अभिनव
3.       जन्म30 जून 1970
4.       जन्म स्थानभटगाई, प्रखण्ड – तरैया, जिला- छपरा ( सारण) बिहार – 841424
5.       माता-पिताश्रीमती कांती देवी – स्व0 पांडेय कमलेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव
6.       शिक्षाएम. ए. (हिंदी) , पी. एच . डी.
7.       रचनाएँ- शोध प्रबंध प्रपत्तिपरक गीतों की परम्परा और निराला के प्रपत्तिपरक गीत ‘’ ( 2012)
प्रमुख कविताएँ – अमर शहीद , चमक , रावण- दहन , सूरज का गाँव , मरी हुई मछली की बू , तय है, भारतीय प्रजातंत्र, किन्नर, रजनी , राष्ट्रभाषा हिंदी , गण और तंत्र , विकास , रोटी, पिता के आँसू आदि
काव्य संग्रह – “ सृजन संगी ‘’ ( साँझा काव्य संकलन ) ( प्रकाशन वर्ष 2006) , “ सृजन के गीत ’’ ( प्रकाशन वर्ष 2018 ),
“ हाँ ! मैं मज़दूर हूँ ‘’ ( साझा काव्य संग्रह) ( प्रकाशन वर्ष 2020 )
प्रमुख कहानियाँ – “ ताज़िया ” , “ सुंदरी ” , “ मानुष तन “ , “ मज़बूर’’ , “ एहसान’’ , “अंतिम सम्बोधन ‘’, “ ऐसा तो होना ही था ‘’ , “बँधी प्रीत की डोर ‘’ , “ रुका न पंछी पिंजरे में ‘’ , “ फरिश्ते ‘’ “दंश’’ “कोख ‘’ , “ क्षितिज के पार ‘’, “माँ ‘’, “ स्वप्नजाल’’, “ कवने घाट पर सौनन भईली’’ आदि
8.       समीक्षा “ वैदिक एवं उपनिषद् साहित्य और निराला’’ (2013) , “ विशिष्टाद्वैत और निराला ‘’ (2013) “ निराला के भक्ति पर तुलसी का प्रभाव ‘’ (2014) “ प्रपत्ति : अर्थ और स्वरूप ‘’ (2014) , “ शांकर वेदांत और निराला ‘’ (2014) , “ शमशेर की कविता : अतियथार्थवादी रूप में’’ (2015) , “ निराला के प्रपत्तिपरक गीतों के दार्शनिक आधार ‘’(2015) , “ पारसी थियेटर का भारत में नया स्वरूप ‘’ (2015) , “ भूमण्डलीकरण , भारतीय किसान और हिंदी साहित्य ‘’ (2015) , “ उसने कहा था : एक कालजयी कहानी ‘’ (2016) , “ सूर साहित्य में लोक गीत और लोक नृत्य ‘’ (2018) , “ दिनकर के काव्य में क्रांति और विद्रोह का स्वर ‘’ (2019) ,” दिनकर के काव्य में सर्प बिम्ब ‘’ (2020) , “ आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी और निराला ‘’ आदि
9.       विशेष आकाशवाणी – बीकानेर , जोधपुर और गोरखपुर से कविता का प्रसारण
दूरदर्शन – मारवाड़ समाचार , जोधपुर से कविता का प्रसारण
सम्पादन सहयोग – “ मानव को शांति कहाँ ‘’ (मासिक पत्रिका) (2004- 2008 तक उप संपादक )
आयोजन सचिव – “ महामारी ,आपदा और साहित्य ‘’ पर एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेविनार
( 13 जून 2020)( आयोजक – भवंस मेह्ता महाविद्यालय, भरवारी,यूपी)
व्याख्यान – “ सिनेमा और साँझी विरासत ‘’ (14 जुलाई 2020 ) वाड़.मय पत्रिका ,अलीगढ़ और विकास प्रकाशन ,कानपुर के संयुक्त तत्वाधान में ।
सम्मान – साहित्योदय सम्मान (2020) , लक्ष्यभेद श्रम सेवी सम्मान(2020)
10.   धर्महिन्दू
11 .पता आदित्य अभिनव उर्फ डॉ. चुम्मन प्रसाद श्रीवास्तव
सहायक आचार्य (हिंदी)
भवंस मेह्ता महाविद्यालय , भरवारी
कौशाम्बी (उ. प्र. )
पिन – 212201
12 .नागरिकता भारतीय
13 .संपर्क सूत्र मोबाइल 7767041429 , 7972465770
ई –मेल chummanp2@gmail.com

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मिल्खा सिंह जीवन परिचय | Milkha Singh biography and quotes in hindi

मिल्खा सिंह जीवन परिचय | Milkha Singh biography and quotes in hindi

फ्लाइंग सिख नाम से मशहूर एथलीट  मिल्खा सिंह ऐसे खिलाडी थे जिन्होंने देश के लिए कई स्वर्ण पदक जीते , भारतीया  आर्मी में रहकर एक सफलतम धावक के रूप में विश्व में एक पहचान बनायीं।  विभाजन के दौरान अनाथ हो गए थे , लेकिन कभी न हारने का जज्बा ने उन्हें देश का एक सफलतम धावक धावक बना दिया।

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मिल्खा सिंह जीवन परिचय | Milkha Singh biography and quotes in hindi

  • नाम –  मिल्खा सिंह 
  • जन्म –  20 नवंबर  1929
  • जन्मस्थान –   गोविंदपुरा पंजाब  (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा हैं)
  • मृत्यु -१८ जून २०२१ (आयु ९१) चंडीगढ़, भारत
  • पत्नी का नाम – निर्मल कौर ( मृत्यु २०२१ )
  • राष्टीयता – भारतीय 
  • पुत्र का नाम – जीव मिल्खा ( गोल्फ खिलाडी )
  • संतान – ४ 
  • खेल – धावक( ट्रैक एंड फील्ड इवेंट )
  • सम्मान – एशियाई खेलो में – ४ पदक ,  राष्ट्रमंडल खेलों – १ पदक 
  • पुस्तक – आत्मकथा द रेस ऑफ़ माई लाइफ़

Milkha singh love story

मिल्खा सिंह को 1956 के खेल में ऑस्ट्रेलिया की महिला खिलाड़ी बेट्टी कथवर्ट से प्रेम हो गया था, फिर वो इस महिला खिलाड़ी से 1960 में दोबारा मिले, रिपोर्ट्स के अनुसार जब 2006 में खेलो का आयोजन  ऑस्ट्रेलिया में हुआ तो फोन उस महिला खिलाड़ी को लगाया तो उसके लड़के ने उठाया, बताया कि उसकी माँ की मौत कैंसर से हो चुकी है, मिल्खा सिंह जब गांव में रहते थे तब भी उनको वहाँ पर भी एक लड़की से प्रेम था, इसके बाबजूद उनका विवाह वालीवाल  महिला खिलाडी निर्मल कौर से हुआ था।

Milkha singh quotes in hindi

1 .अनुशासन, कड़ी मेहनत, इच्छा शक्ति… मेरे अनुभव ने मुझे इतना कठिन बना दिया कि मैं मौत से भी नहीं डरता।” लेकिन एक कहानी उनकी इच्छा को सबसे स्पष्ट रूप से दर्शाती है।

2. आप जीवन में कुछ भी हासिल कर सकते हैं। यह सिर्फ इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसे हासिल करने के लिए कितने बेताब हैं।

3. मैं यह सोचकर आंसू बहा रहा था कि एक रात पहले मैं कुछ न होने से कुछ बन गया था।

4. जब मैं अपने जीवन पर चिंतन करता हूं, तो मैं स्पष्ट रूप से देख सकता हूं कि दौड़ने का मेरा जुनून मेरे जीवन पर कैसे हावी हो गया है। मेरे दिमाग में जो चित्र कौंधते हैं, वे दौड़ते हैं… दौड़ते हैं… दौड़ते हैं…

5. हमारे अमेरिकी कोच, डॉ. [आर्थर डब्ल्यू] हॉवर्ड, भारतीय टीम के साथ [कार्डिफ के लिए] थे ….डॉ हॉवर्ड की प्रेरणा और सलाह के कारण, मैंने गर्मी के बाद गर्मी जीती और आसानी से फाइनल में पहुंच गया।

6. इनमें से प्रत्येक क्षण कड़वी मीठी यादों को वापस लाता है क्योंकि वे मेरे जीवन के विभिन्न चरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं, एक ऐसा जीवन जिसे मेरे चुने हुए व्यवसाय में जीत के लिए मेरे गहन दृढ़ संकल्प से बचाए रखा गया है।

7. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मुझे पहले 300 मीटर तक अपनी गति बनाए रखनी चाहिए, और फिर अंतिम 100 मीटर में अपना पूरा योगदान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर मैं पहले 300 मीटर पूरी गति से दौड़ता, तो स्पेंस भी ऐसा ही करते, हालांकि यह उनकी दौड़ने की रणनीति नहीं थी।

8. मैं तब तक नहीं रुकता जब तक मैं अपने पसीने से बाल्टी नहीं भर लेता। मैं अपने आप को इतना धक्का दूंगा कि अंत में मैं गिर जाऊं और मुझे अस्पताल में भर्ती होना पड़े, मैं भगवान से प्रार्थना करूंगा कि मुझे बचाए, वादा करता हूं कि मैं भविष्य में और अधिक सावधान रहूंगा। और फिर मैं यह सब फिर से करूँगा।

9. मेरे लिए ट्रैक, एक खुली किताब की तरह था, जिसमें मैं जीवन के अर्थ और उद्देश्य को पढ़ सकता था। मैंने इसका सम्मान ऐसे किया जैसे मैं एक मंदिर के गर्भगृह में होता, जहाँ देवता निवास करते थे और जिसके सामने मैं एक भक्त के रूप में विनम्रतापूर्वक स्वयं को प्रणाम करता था। अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ रहने के लिए, मैंने सभी सुखों और विकर्षणों को त्याग दिया, अपने आप को फिट और स्वस्थ रखने के लिए, और अपना जीवन उस जमीन को समर्पित कर दिया जहां मैं अभ्यास और दौड़ सकता था। इस तरह दौड़ना मेरा भगवान, मेरा धर्म और मेरा प्रिय बन गया था

FAQ 

उत्तर – 1 .  फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह दूसरा नाम है जो पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने दिया था।

उत्तर – २.  भाग मिल्खा भाग मूवी२०१३ में आयी थी , जिसका निर्देशन राकेश ओमप्रकाशमेहरा ने किया था।

उत्तर -३. मिल्खा सिंह की लम्बाई 178 सेंटीमीटर है और उनका वजन 70 kg है

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रावल रतन सिंह मेवाड़ की जीवनी | Rawal Ratan Singh history in hindi

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राजस्थान की धरती ने वीरों को जन्म दिया है उन्ही वीरों में रावल रतन सिंह का नाम आपने शायद न सुना हो लेकिन आप रानी पद्मावती को जानते होंगे उन्ही के पति रावल रतन सिंह मेवाड़ की जीवनी के बारे में इस लेख में बात करेंगे, चित्तौड़ की महारानी का जौहर , राजपूत सैनिको के द्वारा अलाउदीन का सामना करना इस लेख में बताया गया है।

रावल रतन सिंह का जीवन परिचय एवं इतिहास


नाम – रावल रतन सिंह
पिता का नाम -रावल समरसिंह
शासक – मेवाड़ के ४२ शासक ( अंतिम शासक )
शासन वर्ष – १३०२ -१३०३ ( एक वर्ष )
वंश – गुहिल वंश
मृत्यु – अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा धोखे से
पत्नी -रानी पद्मावती
भाई – २ (राघव और चेतन )


रावल रतन सिंह मेवाड़ कौन थे

रावल रतन सिंह १३ शताब्दी में जन्मे चितौड़ के राजपूत राजा थे , राजा रत्न सिंह के बारे में जानकारी हिंदी के महाकाव्य पद्मावत में मिलती है ,अपने वंश के अंतिम शासक भी थे। राजा रतन सिंह शादीशुदा थे १३ रानी उनके महल में निवास करती थी , लेकिन राजपूत खून होने की वजह से वह महाराजा मलखान सिंह को युद्ध में हराकर  रानी पद्मावती से विवाह किया , इसके बाद उनके द्वारा जीवन में कोई विवाह नहीं किया गया।

रावल रतन सिंह की मृत्यु का कारण क्या था ?


रावल रतन सिंह की मृत्यु की वजह अलाउदीन की राजनीतिक  महत्वाकांक्षा थी ,रत्न सिंह के भाइयों के द्वारा  अलाउदीन से मिलकर उनकी पत्नी पद्मावती की सुंदरता की चर्चा की , जिसके कारण उसने चित्तौड़ पर हमला कर दिया लेकिन राजपूत सैनिको ने उसकी सेना से खूब लड़ाई लड़ी , जब वह असफल रहा तो उसने प्रस्ताव भेजा कि मैं आपकी पत्नी का चेहरा शीशे के माद्यम से देखना चाहता हूँ , राजा रतन सिंह उसके जाल में फँस गए। जैसे ही उसने रानी पद्मिनी का प्रतिबिंब देखा वह मोहित हो गया २८ जनवरी १३०३ में दिल्ली से धावा बोल दिया चित्तौड़ की तरफ २६ अगस्त १३०३ को चित्तौड़ को फतह कर लिया। इस युद्ध में ३० हज़ार से अधिक राजपूत लड़ाकू मारे गए थे , जब रानी पद्मावती को पता चला कि राजा रतन सिंह मारे गए है , १६ हज़ार रानियों के साथ अग्नि में जौहर कर आत्माहुति दी

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Ashok kumar gautam biography in hindi

अशोक कुमार गौतम का जीवन परिचय 

(Ashok kumar gautam biography in hindi)


जीवन संगिनी- श्रीमती किरन
आँखों के तारे- चित्रांशी, वेदांश प्रताप
जन्मतिथि- 10 दिसंबर 1978
जन्मस्थान- सरेनी, जनपद रायबरेली
शैक्षणिक योग्यता- एम0ए0, बी0एड0, यू0जी0सी0 नेट (2 बार)


सम्पादन


  1. महावीर स्मृति (वार्षिक पत्रिका)
  2. निष्कम्प दीपशिखा : डॉ0 चम्पा श्रीवास्तव (आस्था ग्रंथ)

शोध पत्र प्रकाशन


  1. 10 अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार में आलेख,
  2. 15 राष्ट्रीय सेमिनार में आलेख,
  3. 25 स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में लेख।

सहभागिता

Ashok kumar gautam biography in hindi


  1. 93 राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय वेबीनॉर,
  2. समाजोपयोगी रेडियो सन्देश प्रसारण,
  3. विभिन्न समाचार पत्रों और यूट्यूब चैनलों में छात्रों और आमजन से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर लेखन और वक्तव्य।

सम्मान, प्रशस्ति पत्र


  1. गयत्रीकुंज हरिद्वार द्वारा सम्मान (2012 ई0)
  2. सरस्वती सम्मान, भारत विकास परिषद शाखा रायबरेली (2015 ई0)
  3. मतदाता जागरूकता अभियान के लिए जिलाधिकारी रायबरेली द्वारा सम्मान (2017 ई0)
  4. गणितज्ञ रामानुजन सम्मान (2018 ई0)
  5. कलमकार सम्मान (2019 ई0)
  6. टीचर इन्नोवेशन अवार्ड, नई दिल्ली (ZIIEI 2019 ई0)
  7. व्योम और निर्माण संस्था लखनऊ प्रशस्ति पत्र 2023

  • मूल मंत्र- अंग्रेजी के अल्पज्ञान ने हिंदी को पंगु बना दिया।

संप्रति


  • असिस्टेंट प्रोफेसर, कुलानुशासक,
  • श्री महावीर सिंह स्नातकोत्तर महाविद्यालय, हरचंदपुर, रायबरेली।
  • सम्पर्क सूत्र- 9415951459, 9415819451
  • ईमेल- asstprofashok@gmail.com
  • वर्तमान पता-सरयू-भगवती कुंज 172/6 शिवा जी नगर, जनपद- रायबरेली, उत्तर प्रदेश

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Jananayak Karpoori Thakur/कर्मयोगी जननायक कर्पूरी ठाकुर

कर्मयोगी जननायक कर्पूरी ठाकुर

Jananayak Karpoori Thakur: जिस समय भारत माता परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ी हुई थी। उसी समय कर्पूरी जी का जन्म समस्तीपुर के पितौझिया नामक ग्राम में 24 जनवरी 1924 को हुआ था। इनके पिता का नाम श्री गोपाल ठाकुर एवं माता का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था ।इनके बचपन पर उनके माता-पिता के गुणों का प्रभाव पड़ा ।इनके पिता एक किसान थे ।बाल्यावस्था इनका आर्थिक संघर्षों के बीच ही गुजरा ।
उस समय के वातावरण को देखते हुए इनका मन अपने देश को स्वतंत्र कराने में लगा ।देश भक्ति इनमें कूट कूट कर भरी थी ।भारत छोड़ो आंदोलन के समय इन्होंने 26 बार जेल की यात्रा की ।
कर्पूरी ठाकुर जी का विवाह कुलेश्वरी देवी जी के साथ हुआ।

राजनेता होने के साथ ही साथ यह एक समाज सुधारक भी थे

यह सरल और सरस स्वभाव के राजनेता थे ।राजनेता होने के साथ ही साथ यह एक समाज सुधारक भी थे। इन्होंने समाज में व्याप्त अनेक बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया। निम्न एवं पिछड़े वर्ग के लोगों को उनके अधिकार एवं कर्तव्य के प्रति जागरूक किया। इनके मुख्यमंत्री काल में ही पिछड़े वर्ग को 27% का आरक्षण प्रदान किया गया । कर्पूरी ठाकुर जी ने एक बार उपमुख्यमंत्री एवं दो बार मुख्यमंत्री पद को सुशोभित किया । एवं दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। लोक नायक जयप्रकाश नारायण एवं समाजवादी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया इन के राजनीतिक गुरु थे ।राम सेवक यादव जैसे दिग्गज साथी थे । लालू प्रसाद यादव नीतीश कुमार ,रामविलास पासवान और सुनील कुमार मोदी के यह राजनीतिक गुरु थे ।जब यह बोलते थे सारी जनता इनके भाषण को बड़े ही ध्यान से सुनती थी । उनका चिर परिचित नारा था “अधिकार चाहो तो लड़ना सीखो पग पग पर लड़ना सीखो, जीना है तो मरना सीखो ।
सादा -जीवन ,उच्च विचार इनके जीवन का आदर्श है । यह धन का व्यर्थ व्यय नहीं करते थे ।इनके दल के कुछ नेता अपने यहां की शादियों में करोड़ों रुपया खर्च करते थे परंतु जब इन्होंने अपनी बेटी की शादी की तो उन्होंने एक आदर्श उपस्थित किया और बहुत ही साधारण ढंग से विवाह किया ।एक मुख्यमंत्री की बेटी का विवाह अत्यंत साधारण ढंग से संपन्न हुआ , यह अपने आप में अनोखी बात थी।

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कर्पूरी जी का वाणी पर कठोर नियंत्रण था । वह भाषा के मर्मज्ञ थे। उनका भाषण आडंबर रहित ,ओजस्वी, उत्साहवर्धक एवं चिंतन परक होता था ।कड़वा से कड़वा सच बोलने के लिए वह इस तरह के शब्दों एवं वाक्यों को व्यवहार में लेते थे जिसे सुनकर प्रतिपक्ष तिलमिला तो उठता था लेकिन यह कभी यह नहीं कह पाता था कि कर्पूरी जी ने उसे अपमानित किया। उनकी आवाज बहुत ही शानदार एवं चुनौतीपूर्ण होती थी लेकिन यह उसी हद तक सत्य ,संयम और संवेदना से भी भरपूर होती थी ।इनके गुणों का बखान कहां तक करें जो अपने आप में अवर्णनीय है ।
इनकी लोकप्रियता ने ही इन्हें कर्पूरी ठाकुर से जननायक कर्पूरी ठाकुर बना दिया। 65 साल की उम्र में 17 फरवरी 1988 को दिल का दौरा पड़ने से कर्पूरी ठाकुर जी का निधन हो गया।
इनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर निम्न पंक्तियाँ भी प्रस्तुत है—–

हैं पल चांदनी रात की तरह,
जो बीत जाया करते हैं ।
है कर्म की ताकत,तूफ़ान प्रबल पर्वत,
झुक जाया करते हैं।
अक्सर दुनिया के लोग ,
समय के चक्कर खाया करते हैं ।
लेकिन कुछ ऐसे होते हैं ,
जो इतिहास बनाया करते हैं।।

यह उसी कर्मवीर इतिहास पुरुष की,
अनुपम अमर कहानी है ।

ईमानदारी ,कर्तव्यनिष्ठा ,सत्यवादिता,
जिसकी निशानी है।
दूरदर्शी,कुशल वक्ता होना ,
जिसकी पहचान है ।
सादा -जीवन, उच्च -विचार ,
कर्पूरी जी की शान है ।।

कुशल राजनीतिज्ञ बन ,
बिहार का मान बढ़ाया जिसने।
अपमान का घूंट पीकर भी,
प्रेम ही दिखाया जिसने ।
मानवता का पाठ पढ़कर भी,
सहा कारागृह का दुख जिसने ।
मुख्यमंत्री पद पाकर भी ,
अभिमान न दिखाया जिसने।।

वह साहसी ,वीर था ,
या त्यागी -सन्यासी ।
जिसके यश को याद करेंगे,
युग -युग तक भारतवासी ।
जननायक बनकर भी पहले ,
रहा वह देशवासी।
गीता -रामायण के भावों में थी,
उसकी आंखें प्यासी ।

पितौंझिया गांव ,कर्पूरी ग्राम बना,
जिसके नाम से।
दलितों का मसीहा हुआ वह ,
अपने काम से।
उनका कर्म क्षेत्र ,
उनके लिए ही धाम था ।
वेद -पुराणों की वाणी ही ,
उनके जीवन का घाम था ।।

Jananayak- Karpoori- Thakur

रूबी शर्मा
ग्राम व पोस्ट -जोहवा शर्की
जिला -रायबरेली
उत्तर प्रदेश

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जीवन परिचय सीताराम चौहान पथिक

जीवन – परिचय ।

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सीताराम चौहान पथिक

  • नामसीताराम चौहान पथिक
  • जीवन संगिनीस्व रंजना चौहान
  • जन्म तिथि: 5 जुलाई, 1940
  • जन्म स्थान- बठिंडा, पंजाब
  • योग्यता-एम ए हिंदी, बी-एड, साहित्य रत्न, प्रभाकर ,अनुवाद में डिप्लोमा ।

प्रकाशित पुस्तकें:


  • घूंट-कुछ कड़वे कुछ मीठे ।
    (कहानी- संग्रह)
  • नारी तुम केवल श्रद्धा हो (नारी-प्रधान नाटक संग्रह )
  • दर्पण — कविता संग्रह
  • वेदनाओ के ज्वाला- मुखी(कविता- संग्रह )
  • लावा ( कविता – संग्रह )
  • पीड़ा- घटते मूल्यों की( कविता – संग्रह )
  • कृष्ण- सुदामा मैत्री (खण्ड- काव्य )
  • स्वाभिमानी महाराणा प्रताप (खण्ड- काव्य)
  • गुरुकुल शिक्षा- एक स्वर्णिम अध्याय( खण्ड- काव्य )
  • बचपन और पचपन (बाल- गीत संग्रह)

साहित्यिक-उपलब्धियां


अब तक 100 सम्मान, जिनमे प्रमुख हैं

  1. राष्ट्रीय महा – महोपाध्याय विदश्री,
  2. जीवनोपलब्धि सम्मान,
  3. विद्या- वाचस्पति सम्मान,
  4. लाइफ- टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड ,
  5. अभिनन्दन -पत्र,
  6. भाषा – भूषण सम्मान आदि।

अन्यान्य —


  1. यूनेस्को के अन्तर्गत पुस्तक- एच आई वी काउन्सलिंग गाइड का हिन्दी अनुवाद,
  2. फ्रैंक माॆॅरिस की अंग्रेजी पुस्तक– जवाहरलाल नेहरू का हिन्दी अनुवाद,
  3. दिल्ली सरकार के वरिष्ठ विद्यालयों में हिंदी अध्यापन का 40 वर्षीय अनुभव ।

सम्प्रति —


  • सेवा- निवॄत हिन्दी शिक्षक , स्वतन्त्र साहित्य सॄजन , अध्ययन -मनन ।।

सम्पर्क —


  • सी-8 , 234ए , केशव पुरम, नयी दिल्ली — 110035
  • मोबाइल – 09650621606
  • दूरभाष-011-27106239
  • ई-मेल ChauhanSr40@gmail.com 
  • राष्ट्र-हित में नेत्रदान संकल्प

सीताराम  चौहान पथिक की रचना हिंदीरचनाकर पर 


hindi geet lyrics || हम सबके हैं सभी  हमारे

डॉ. रसिक किशोर सिंह ‘ नीरज ‘ प्रस्तुत गीत संग्रह hindi geet lyrics हम सबके हैं  सभी  हमारे  के  माध्यम  से  अपनी  काव्य-साधना के भाव  सुमन  राष्ट्रभाषा  हिंदी  के श्री  चरणों  में  अर्पित  कर रहे हैं  |  इस  संकलन  की गीतात्मक  अभिव्यक्तियों में  भाव  की  प्रधानता  है | 

  गाँवों में फिर चलें 

(hindi geet lyrics)


गाँवों  में   फिर    चलें 

महानगर  को  छोड़  दें 

 मर्माहत    मानव   के 

जीवन   में   मोड़   दें | 

 

बाधित संस्कृति -प्रवाह 

कृत्रिमता     है     यहाँ 

स्वप्नों  से  सम्मोहित 

चकाचौंध  जहाँ -तहाँ 

व्यस्तता  हुई   प्रबल 

न  स्नेह की हवा बही 

झूठ का चला चलन 

न सत्य की प्रथा रही | 

 

मानव हो शांत सुखी 

प्रदूषण – गढ़ तोड़ दें 

गाँवो  में  फिर   चलें 

महानगर को छोड़ दें | 

 

शूरवीर -दानवीर 

सब यहीं पर सो  गये 

प्रौद्योगिकी विज्ञान के 

श्रेष्ठ  रूप  हो   गये 

वसुधैव कुटुम्बकम की  

सद्भावना रही यहाँ 

भारतीय चिंतन की 

समता है और कहाँ ?

 

भ्रमित पंथ अनुकरण 

‘नीरज’  अब  छोड़   दें 

गाँवों   में  फिर  चलें 

महानगर को छोड़ दें | 

https://youtu.be/HG7-Qe4du_c


 २.मैं अकेला हूँ 

(hindi geet lyrics)

 

भीड़ में रहते हुए भी  मैं अकेला हूँ | 

मैं नहीं केवल अकेला 

है अपार समूह जन का 

किन्तु फिर भी बेधता है 

क्यों अकेलापन ह्रदय का 

 

सिंधु नौका के विहग सा मैं अकेला हूँ | 

भीड़ में रहते हुए भी मैं अकेला हूँ | | 

 

मित्र कितने शत्रु कितने 

दुःख कितने हर्ष कितने 

कल्पना के नव सृजन में 

सत्य कितने झूठ कितने 

 

जय पराजय त्रासदी सौ बार झेला हूँ | 

भीड़ में रहते हुये भी मैं अकेला हूँ ||  

 

थके   मेरे पाँव चलते 

स्वप्न नयनों में मचलते 

ठोकरें लगतीं  मगर हम 

लड़खड़ाकर  फिर सम्हलते 

 

‘नीरज’ यह खेल कितनी बार खेला हूँ | 

भीड़ में रहते हुये  भी मैं अकेला हूँ || 

https://youtu.be/9m9VeSkqSCA


३. मत समझो घट भरा हुआ है 

(hindi geet lyrics )

 

मत समझो घट भरा  हुआ है | 

पूरा   का   पूरा     रीता    है|| 

 

एक – एक     क्षण  बीते कैसे 

यह वियोग की अकथ कहानी 

अम्बर   पट पर   नक्षत्रों    में 

पीड़ा की   है  अमिट  निशानी 

भरा-भरा  दिखता  सारा नभ 

पर अन्तस  रीता -रीता  है | 

पूरा    का  पूरा  रीता   है || 

 

जीवन तिल तिल कर कटता 

है प्रहर मौन इंगित  कर जाते 

सूनेपन    की  इस नगरी   में 

परछाईं     से   आते      जाते 

तम  प्रकाश की आँख मिचौनी 

में    ही   यह  जीवन बीता  है||

पूरा    का  पूरा  रीता   है ||     

 

विस्मृति की इस तन्मयता में 

खो   जाता है दुख सुख सारा 

मैं तुम का विलयन हो जाता 

खो  जाता अस्तित्व हमारा 

दग्ध प्राण निःशब्द  सुनाते 

मूक प्रणय की नवगीता है |

पूरा    का पूरा रीता है | | 

https://youtu.be/CpvZ8fVtY0M
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तुलसी गीत / डॉ. रसिक किशोर सिंह नीरज

तुलसी गीत   (tulsi geet dr. rasik kishor singh neeraj) डॉ. रसिक किशोर सिंह नीरज के गीत संग्रह ‘हम सबके है सभी हमारे से लिया गया है | प्रस्तुत है रचना –

तुलसी गीत 

(tulsi geet dr. rasik kishor singh neeraj)


वसुधा में नित्य राम

दर्शन की बात करनी है

हुलसी के पुत्र तुलसी

पैगम्बर की बात करनी है |

 

रत्नों  में रत्न पाकर

हुए राममय धनी थे

सौभाग्य  संत  तेरा

हीरे की नव कनी थे |

 

युग   प्रेरणा   रहो      तुम

परिवर्तन की बात करनी है

हुलसी   के   पुत्र    तुलसी

पैगम्बर की बात करनी है |

 

कवि  भावना  में  तेरी

यमुना   हुई  प्रवाहित

मानस  सुधा को पीकर

रस भक्ति स्वर निनादित |

 

आत्मा सुत आत्मीय सबके

प्रत्यर्पण की बात करनी है

हुलसी   के  पुत्र   तुलसी

पैगम्बर की बात करनी है |

 

झंकृत न हो सका   उर

जब काव्य गीत स्वर था

बजरंग   की   कृपा   से

हुआ ज्ञान भी मुखर था |

 

तुलसी से  चन्दन हाथ ले

रघुवर की बात  करनी  है

हुलसी   के  पुत्र    तुलसी

पैगम्बर की बात करनी है |

 

आदर्श  के      पुजारी

भविष्यत के दृश्य देखे

अन्तः करण मनुज के

सौभाग्य   कर्म  लेखे |

 

अविरल तुम्हारी नवधा

भक्ती की बात करनी हैं

हुलसी   के  पुत्र   तुलसी

पैगम्बर की बात करनी है |

 

कविता लिखी या मंत्रो

में   दिव्य दृष्टि   तेरी

है सकल विश्व आँगन

रसधार    वृष्टि  तेरी |

 

भू स्वर्ग  सृष्टि    करके

अम्बर की बात करनी है

हुलसी   के  पुत्र   तुलसी

पैगम्बर की बात करनी है |

 

किया सर्वस्व राम अर्पण

शिक्षण   सहज दिया था

बंधुत्व       भावना    से

जग ऐक्यमय  किया था |

 

‘नीरज ‘ राम  हो ह्रदय में

तुलसी की बात करनी है

हुलसी  के   पुत्र   तुलसी

पैगम्बर की बात करनी है |

https://youtu.be/QshJCxN5X3w


२. वर दे हे माँ ,जग कल्याणी 


वीणा पाणि सुभग वरदानी

वर दे हे माँ ,जग कल्याणी |

 

झंकृत    वीणा के   तारों   से

स्वरलय गति की झनकारो से

गीतों  की मधुरिम तानों से

झूम   उठे  मानस कल्याणी

वीणा पाणि सुभग वरदानी

वर दे हे माँ ,जग कल्याणी |

 

शब्दों में नव अर्थ जगा दे

तिमिर घोर अज्ञान भगा दे

भावों में’ शुचि पावनता दे

नवल ज्योति भर दे वरदानी

वीणा पाणि सुभग वरदानी

वर दे हे माँ ,जग कल्याणी |

 

लिखे लेखनी तेरी महिमा

अंकित छंद -छंद में गरिमा

अक्षर आभा युत ज्यों मणि माँ

नव रस नित्य करें अगवानी

वीणा पाणि सुभग वरदानी

वर दे हे माँ ,जग कल्याणी |