जो है क़ातिल उसी की हुकूमत | ग़ज़ल | राजेन्द्र वर्मा’ राज ‘

ग़ज़ल
उस कहानी में थोड़ी नसीहत भी है।
कुछ फ़साना है तो कुछ हक़ीक़त भी है।।

वो खफ़ा है जो तुमसे तो यह जान लो।
उसे तुमसे यक़ीनन मुहब्बत भी है।।

कुछ दिखावा ज़रूरी है वरना यहांँ।
सादगी आजकल इक मुसीबत भी है।।

मेरी ख़ामोशियों की तू वज़हें न ढूंँढ।
मुझे कम बोलने की कुछ आदत भी है।।

कई दुश्मन मेरे दोस्त जैसे भी हैं।
और कुछ दोस्तों से अदावत भी है।।

मुझे मंदिर या मस्जिद की ख़्वाहिश नहीं।
फ़र्ज़ ही मेरा मेरी इबादत भी है।।

‘राज’ इंसाफ़ कैसे मिलेगा भला।
जो है क़ातिल उसी की हुकूमत भी है।।

– राजेन्द्र वर्मा’ राज ‘