जिन्दगी को हमने जूम किया – अभय प्रताप सिंह | पुस्तक समीक्षा

पहली बार कोई पुस्तक पढ़ते हुए ऐसा लगा कि जैसे कविताओं की गहराइयां तभी समझ आएंगी जब साहित्य में रुचि ही नहीं बल्कि उच्च स्तर का ज्ञान भी होना ज़रूरी है।

पल्लवी मंडल और अंजली ठाकुर द्वारा लिखित पुस्तक ” जिन्दगी को हमने जूम किया ” पढ़ने के बाद ये अहसास हुआ की कोई इतनी कम उम्र में इतनी अच्छी कविताएं … ?

ये पुस्तक सिर्फ़ लिखी ही नहीं गई है। बल्कि इन कविताओं में सामाजिक, राजनीतिक , सांस्कृतिक, स्त्री विमर्श, नया समाज निर्माण, प्रेम, संघर्ष, सबक, सीख उम्मीद, खालीपन, अकेलापन आदि काफ़ी मात्रा में देखने को मिलती हैं।

” तुम जो कागज के टुकड़ों में बसा
कभी चुपके से हाथों में सिमटा
कभी सपना बन, आंखों में छलका
तुम्हारा मोल क्या, कभी सम्पूर्ण तो कभी अधूरा। “

” जब कुछ नहीं होता
तो सिर्फ़ उम्मीद ही होती है
उस सुबह की
जो शायद मेरी भी हो। “
इसी पुस्तक से ….

मैं सालों पहले करीब 150 से अधिक कविताएं लिखा था पर बाद में लगा कि मैं कविताएं लिखने के लायक नहीं हूं जो कि मित्र आशुतोष शुक्ल के शब्दों का मुहर लगने के बाद ये साबित हो गया था कि मेरे द्वारा कविताएं लिखना देश के ऊपर अहसान करना हो जाएगा इसलिए मैं उन सभी कविताओं को चुन – चुन कर डिलीट किया क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि मेरी कविताओं का एक भी अभिलेख इतिहास का पाठ्यक्रम बढ़ाए।

कहते हैं कि –

” किसी उदास चेहरे पर खुशियां लाने का मूल्य,
किसी खुश चेहरे की तारीफों से कई गुना अधिक होता है।”

भगवंत अनमोल द्वारा लिखित पुस्तक ” ज़िंदगी 50 – 50 ” की ये पंक्तियां पल्लवी जी और अंजली ठाकुर द्वारा लिखित पुस्तक ” जिन्दगी को हमने जूम किया ” पर एकदम सटीक बैठती है।

आप दोनों की इस उपलब्धि के लिए बहुत सारी बधाइयां और मुझे इस पुस्तक को सम्प्रेम भेंट के लिए बहुत – बहुत आभार।

आख़िर में आप दोनों की तारीफ़ में कुछ कहने के लिए हेक्टर गर्सिया और फ्रांसिस मिरेलस द्वारा लिखित व प्रसाद ढापरे द्वारा अनुवादित पुस्तक ” इकिगाई ‘ में जापानी कहावत सबकुछ बयां कर देती है जो कि –

” सौ वर्ष जीने की चाहत आप में तभी होगी
जब आपका हर पल सक्रियता से भरा हो।”

– अभय प्रताप सिंह
(संस्थापक – लेखनशाला)